केशव मोहन पाण्डेय जी के तीनगो कबिता


केशव मोहन पाण्डेय जी के तीनगो कबिता आप सभे खाती परसतुत बाड़ी स। केशव जी अपना कबिता में अपनी काथा नियर गाँव देहात के प्रतीकन के परियोग खुब करेलन। एसे इ जरूरी हो जाला कि उनकर कबिता के ओही बिम्ब में देखि के पढ़ल औरी समझल जाओ। कबिता ‘जीअन बहुते ईयाद आवेले’ में केशव जी गाँव के ऊ समाज, संस्कार, व्यवहार, साहचर्य औरी सौहार्द के भावपूर्ण परसतुति कइले बाड़न। हर भाव के देखावे के कोसिस कइले बाड़े जेवन बहुत हद ले सफल भी बा लेकिन संगही इहे कबिता के लमहर औरी कहीं भारी बना देता। अपनी दूसरकी कबिता ‘गौरैया’ में गौरैया के माध्यम से समाज में आइल बदलाव औरी संवेदना के प्रति दुराव देखावे के परियास करत नजर आवत बाड़े। ई कबिता प्रतीकात्मक बे जे गौरैया के जरिए बहुत कुछ कहे चाहत बे औरी ई पाठक के मनःस्थिति पर बा कि ऊ एके केङने लेता। इहाँ के तीसरी कबिता ‘नज़री में पानी’ लइकीन के लेके समाज के रवईया के देखावत बा।
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जीअन बहुते ईयाद आवेले 

जीअन कहले गाँव में
पिपरा के छाँव में
इनरा के पानी पर
लौकी-कोहड़ा छान्ही पर
जे के मन करे
तुर के खाव,
धोबीघटवा में डुबकी लगाव।

सभे भाई-भतीजा ह,
गाँव के दमदा
सबके जीजा ह।

गाँव भर के दाढ़ी
बोधा भाई
बनावेले एके छूरा से,
यादो जी,महतो-अंसारी चाचा
तपिस जगावे देह में
एक्के घूरा से।

एक्के ताश के फेंटा पर
एक्के कुरुई में भुजा बा,
अपना झमाड़ा के फरहरी सब
जुआ के भइल खूजा बा,
सब हाँड़ी पर परई बइठल
सबके राग समझेला लोग,
भले कतहूँ दही चिउड़ा से
त कतहूँ -
गरई के लागेला भोग।

दुअरा काका के काना-फुस्सी पर
गिरधारी चुटकी मारे ले
होत भिनुसारे नगीना भाई
सबके गइया गारे ले।

भक्ति-भक्त के नाम ले के
तिरछोलई के अम्बर ओढेला जे
डांड़-आर मिलावे में
कुदारी के कोना से कोड़ेला जे,
ऊ सगरो टोला के मुद्दई हवे
मिल जोल से रिश्ता निबहेला,
सबके हाथ से ले के लौंग
लौंगिया बाबा के बतिया नेह से उचरेला।

जब एक्के लहरिया मारे सब
तब ताल लड़े बलाय से
भोरहरिया चुस्की चढ़ जाला
पंडी जी के चाय से।

लउके ना कतहूँ इनरा अब
बाग़-बगीचा छान्ह भी
ओहिसन बतरस कहवाँ बा
नाहीं मीठ जुबान भी।

अइसन अब गाँव कहाँ ?
पिपरा के छाँव कहाँ?
टाटी-बाती- बान्हा ना
हँसियाली के बहाना ना।

अटकन-चटकन दही चटाकन
सबके घर के गीत हवे
जे बाउर से बैर करेला
ऊहे सबके मीत हवे।

बदलत समय के फेरा ह
ई जग तब्बे त डेरा ह।
होत बिहाने जब कतहूँ
कवनो मनई लोटा ले धावले,
साँच कहिले हियरा में
जीअन बहुते ईयाद आवेले।
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गौरैया

जइसे दूध-दही ढोवे
सबके सेहत के चिंता करे वाला
गाँव के ग्वालिन हऽ
गौरैया
एक-एक फूल के चिन्हें वाला
मालिन हऽ।

अँचरा के खोंइछा ह
विदाई के बयना हऽ
अधर के मुस्कान ह
लोर भरल नैना हऽ।

चूडि़हारिन जस
सबके घर के खबर राखेले
डेहरी भरी कि ना
खेतवे देख के
अनाज के आवग भाखेले।

गौरैया,
सबके देयादिन ह
ननद हऽ
धूरा में लोटा के
बेलावे बरखा वाला जलद हऽ।

रूखल-सूखल थरिया में
चटकदार तिअना हऽ
आजान करत मुस्तफा
त भजन गावत जिअना हऽ।

ओरी के शोभा
बड़ेरी के आधार हऽ
चमेली के बगीचा में
गमकत सदाबहार हऽ।

दीदी खातिर ऊ
पिडि़या के पावन गोबर हऽ,
काच-कूच कउआ करत
माई के सोहर हऽ।

तृण-तृण ढो के
बाबूजी के बनावल खोंता हऽ,
रेडि़यों के तेल से महके जवन
माई के ऊ झोंटा हऽ।

झनके ना कबो ऊ
फगुआ के बाजत झाँझ-पखावज हऽ,
दूबरा के मउगी जस
गाँव भर के ना भावज हऽ।

गौरैया तऽ
रिश्ता हऽ, रीत हऽ,
चंचल मन के गीत हऽ।

फिर काहें बिलात बिआ
मिल के तनी सोंची ना
ओह पाँखी के पखिया के
बेदर्दी से नोंची ना।

हर भरल गाँव से
हर भरल घर से
हर हरिहर पेड़ से
ओह फुरगुद्दी के वास्ता बा,
एह बदलत जमाना में
भले बिलात बिआ बाकिर -
आजुओ ओकर सोंझका रास्ता बाऽ।।

आजुओ
भरमावे वाला
भरमावते बा गौरैया के
रोज दे के नया-नया लुभावना,
जमाना भले बदल ता
बाकिर आजुओ
चिरई के जान जाव
लइका के खेलवना।।
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नज़री में पानी 

चौकी पर
बेलाइल पड़ल
रोटी नियर
नरम-चिकन
गोल-मटोल
अपना नन्हकी के देख के
एक बेर
भर गइल
आँख माई के।

जइसे
भगौना के दभकत भात से
टपके खातीर पानी
काँपे लागेला
पपनी जइसन ढकना
माइयो के हियरा अधीर हो गइल,
नन्हकी के भरत देह देख के
अंतर ले
बड़का पीर हो गइल।

अब केहू कवना मोनीआ में लुकवावे
रूप के एह गँठरी के
कुछू त नइखे कहल जा सकत
जमाना के नजरी के,
जब नन्हकी स्कूल जाले
बाजार करेले
देश के चिंता पर बात करेले
अपना अचूक तर्क से
अपने बड़का भइया के
बेर-बेर मात करेले
त ओकरा तन-बदन के
चोरवा आँख से टोहत
ऊहे लोगवा कह पड़ेला
'एकरा बाप-माई के त तनिको सावधानिये नइखे।'

अब माई कइसे बचाई नन्हकी के
केहू के नज़री में पानिये नइखे।

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लेखक परिचय:-

2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन। 
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख, दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित। 
नाटक लेखन आ प्रस्तुति। 
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित। 
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण, टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना. 
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन. 
संपर्क – 
तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र. 

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