जहिया भइल गुरु उपदेस - धरनीदास

जहिया भइल गुरु उपदेस। 
अंग-अंग कै मिटल कलेस ।।1।।
सुनत सजग भयो जीव। 
जनु अगिनि परै घीव ।।2।।
घर उपजल प्रभु प्रेम। 
छुटिगे तब ब्रत नेम ।।3।।
जब घर भइल अँजोर। 
तब मन मानल मोर ।।4।।
देखे से कहल न जाय। 
कहले न जग पतियाय ।।5।।
धरनी धन तिन भाग। 
जेहि उपजल अनुराग।।6।।
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लेखक परिचय: -

जनम: 1616 ई (विक्रमी संवत 1673)
निधन: 1674 ई (विक्रमी संवत 1731)
जनम अस्थान: माँझी गाँव, सारन (छपरा), बिहार
संत परमपरा क भोजपुरी क निरगुन कबी
परमुख रचना: प्रेम प्रकाश, शब्द प्रकाश, रत्नावली

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