आज रऊआँ सभ के सोझा मैना के तीसरका अंक परस्तुत बा औरी बहुते निक लागता कि धीरे-धीरे तीसरका अंक भी ले के आवे के मोका मिललऽ। अब तक के छोटहन लेकिन एगो जिअतार औरी उम्मीद डेग हमके विसबास दियावत बा कि भोजपुरी साहित्य के काल्ह निमन बा। पहिलका औरी दूसरका अंकन नियर एहू अंक में खाली दू गो काब्य रचना बाड़ी सऽ। काब्य रचना का दूनू के दूनू गज़ल हवी सऽ। हमार कोसिस रही कि आगे से गद्य के रचना भी छपऽ सऽ। ए अंह में जौहर शफियाबादी जी कऽ 'छन-छन के बनल-बिगड़ल टाँकल बा हथेली पर' औरी पान्डेय कपिल जी कऽ ''बहुत कुछ कहाइल, बहुत कुछ लिखाइल'।
- प्रभुनाथ उपाध्याय
---------------------------------------------------------------------------------------------
बहुत कुछ कहाइल, बहुत कुछ लिखाइल
मगर बात मन के कबो न ओराइ॥
लिखाइल भले बात हिरदय से अपना
मगर ऊ लिखलका कबो न पढ़ाइल॥
छन-छन के बनल-बिगड़ल टाँकल बा हथेली पर,
आवेले हँसी हमरा जिनगी का पहेली पर।
शुभ याद के परछायी सुसुकेले अंगनवाँ में,
जब चाँदनी उतरेले सुनसान हवेली पर।
-------------------------------------------------------------------------------------------------
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें