पाण्डेय कपिल जी भोजपुरी एगो बहुते बढ़िया कवि हवीं। उँहा के जिनगी के तरह-तरह के अनुभवन के अपना ढंग से देख के सुभाव बा औरी ओही के सबका तक पहुंचावे के परियास कईले बानी। उँहा के पाँचगो कबिता रउओं सब पढ़ीं।
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बहुत कुछ कहाइल,बहुत कुछ लिखाइल मगर बात मन के कबो न ओराइ॥
लिखाइल भले बात हिरदय से अपना
मगर ऊ लिखलका कबो न पढ़ाइल॥
हमरा देक्ज के ऊ नज़र फेर लिहले
पहुँचली जबे हम उहाँ पर धधाइल॥
बताईं ना, कइसे ऊ मन से हटाईं
सहज रूप उनकर जे मन में समाइल॥
कहाँ बाटे फुर्सत की सोचत करीं हम
इहाँ रोजी-रोटी के दँवरी नधाइल॥
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