कुबेरनाथ मिश्र 'विचित्र' जी मंच के कवि हवीं जइसे कि मंच इँहा के घर होखे। सुनेवाला में जोश डाले के गुन इँहा के कविता के हर हरफ़ में बा। इँहा के दूगोअ मुक्तक रउआँ सब खाती।
हमार मन बाटे साँवर ऊ गोर हो जाइत।
जवन छवले अन्हरिया के रतिया बाटे।
तवन रउरी मुसुकइला से, भोर हो जाइत।।
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उआँ अइतीं त अँगना अँजोर हो जाइत।हमार मन बाटे साँवर ऊ गोर हो जाइत।
जवन छवले अन्हरिया के रतिया बाटे।
तवन रउरी मुसुकइला से, भोर हो जाइत।।
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जवना सरसों से भूतवा झराए के बा।
भूत ओही सरसउआ में घूसल बाटे।
जवना नेता के दुखवा सुनावे के बा।
लोग ओही के चमचा के चूसल बाटे।।
भूत ओही सरसउआ में घूसल बाटे।
जवना नेता के दुखवा सुनावे के बा।
लोग ओही के चमचा के चूसल बाटे।।
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अंक - 2 (11 जून 2014)
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