
भोजपुरी में जौहर शफियाबादी जी के काम औरी नाम एतना बड़ बा अब ए केवनो परिचय के मोहताज नईखे। उँहा के एगो गज़ल 'होला कबो बहार त पतझर जमीन पर' जेवन रंगमहल दिवान से लिखल गईल बा रउआँ सब खाती।
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होला कबो बहार त पतझड़ जमीन पर
होला कबो बहार त पतझर जमीन परदेखेला खेल रोज ई अँखिगर जमीन पर॥
मोजर सिंगार देख के अइकत बा आम पर
रोपले बा जे बबूर के रसगर जमीन पर॥
धधकत चिता भरोस के देखत रहीले हम
चुपचाप अपना आस का मजगर जमीन पर॥
मजहब धरम के नाम का नफरत के बिस ह
ई आज के सवाल बा लमहर जमीन पर॥
घर-घर में घर के रूप घरारी के मान बा
घर जे बनाई नेह का मजगर जमीन पर॥
आपन जे पेट काट के अनकर छुधा भरे
ऊहे सरग उतारेला ‘जौहर’ जमीन पर॥
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अंक - 2 (11 जून 2014)
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