4.

जरूरी बा भोजपुरी के स्वाभिमान से जोड़ल
ओइसे त बहुत पहिले से संविधान का आठवी अनुसूची में भोजपुरी के डलवावे के माङ भोजपुरिया करत बाड़न बाकिर एने दु-एक बरिस से त जइसे बाढ़ि आ गइल बा। बहुत लोग एकर श्रेय लिहल चाहता। साइत एही कारन सोशलो साइट पर कई गो दल जागरन ना त धरना अभियान जारी रखले बाड़न। हम सभके लाइक क दिहींले, काहेंकि एमें फायदा ढेर लउकेला। नयो पीढ़ी अब कूदे लागल बिया एमें। बड़-बड़ शहरो में अब लइका लजात नइखन सऽ झंडा उठावे में। जय भोजपुरी। एकरे त जरूरत बा आजु।
साँच पूछीं त हम तरसि जाईंले कई बेरि भोजपुरी बोले खातिर। अहिंदी प्रदेश में बड़ा हिचकेले लोग भोजपुरी बोले में। भोजपुरी बोलत-बोलत हिंदी बोले लागेला लोग आ ना त कबो-कबो साँय-साँय बोले लागेलन। साइत डेराला लोग कि केहू गँवार जनि कहि देउ। बाकिर हमरा त एकरो से बरियार कारन बुझाला भोजपुरिया लोगन के परम उदारता आ अपना के महान लोगन का लिस्ट में जोड़वावे के सनक। दोसरा के चीज के नीमन आ अपना चीज के बाउर बतवला से आदिमी निष्पक्ष हो जाला नू ! असली बात त ई बा कि उदारता आ मूर्खता में ढेर अंतर ना होखे, खाली चेतना का कमी भा होखला से रूप बदल जाला। आपन पहिचान बदले के कोशिश से हीन ग्रंथि ना घटी भाई। अपना पहिचान के सुघर, उपयोगी, बेहतर, कम से कम राष्ट्रीय आ ना त अंतर्राष्ट्रीय बनवला से घटी। हम त आजु ले ना लजइलीं लिखे-बोले में। भोजपुरी लिखे-बोले में काहें केहू लजाई भला ?
भोजपुरी के लिखित रूप के पढ़ल सभका खातिर आसान नइखे, ई सोरहो आना सच बा। बाकिर एकर कारन का बा ? हमार जवाब बा- अभ्यास के कमी। सभसे कठिन हटे चीनी भाषा के लिपि। जब चीनी लोग ओकरा आगा केहूके ना पूछसु आ केनियो से कमी नइखे आइल ऊहन लो’ का गुणवत्ता आ जुझारूपन में त हमनी के थथमा काहें लागल बा ? साँच त ई बा कि हमनी का अब मेहनत से भागे लागल बानी जा आ एह स्थिति के कबहूँ सुखद भा शुभ ना कहल जा सके। अपने पढ़ीं आ घर-परिवार में सभके पढ़े के माहौल बनाईं। सवाल खाली भषे के नइखे, संस्कृतियो के बा। रउरा आपन भाषा बचाईं, संस्कृति त घलुआ (डिफाल्ट) में जोगा जाई। एहसे जइसे होखे, जतना होखे, जुटीं सभे, मिलीं सभे। छाती उतान कइके भोजपुरी बोलीं जा, लिखीं जा, पढ़ीं जा पढ़ाईं जा। अब जरूरी हो गइल बा भोजपुरी के अपना स्वाभिमान से जोड़ल। सवाल दगला भा भूभुन फोरला से कुछ मिली ना। जहिया ई बात सभ भोजपुरिया के बुझा जाई, ओह दिन आठवीं अनुसूची के के पूछो, सूची-सूची में भोजपुरी छपा जाई।
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5.
दीया-दियरी के दिन बहुरल
तीन-चार दिन पहिले कपड़ा-ओपड़ा कीने खातिर निकलल रहीं जा। प्लेटफॉर्म प चढ़ते जवन लउकल, ओसे त चका गइलीं हम। जहाँ एक दिन पहिलहूँ खोजला पर पिछला जनम के दिया-दियरी मिलेले आ ऊहो जइसन-तइसन, ओहिजा रेलवे स्टेशन पर कई गो दियरी, रूई के बाती आ माचिस एक साथ पैक कइके मिल रहल बा आ ऊहो जगह-जगह पर। धन्य बाड़े भारतीय, भावना में बहिहें त सभ पीछा आ वैचारिकता में त पुछहीं के नइखे, दुनिया लोहा मानेले। नीक लागल। आतंकवाद केहूके भावे ना। चीन का उल्टा चलला के ई नतीजा ह कि बाजार के रुख बदलि गइल। अब बाजारो के सोचेके परी कि “जनविरोधी आ राष्ट्रविरोधी काम कइलऽ कि गइलऽ।” अब ना चाहीं केहूके चाक-चीक, दिये-दियरी से हमनी के काम चलि जाई। चलीं, अनासे एगो बड़हन काम हो गइल। कोंहार अपना शिल्पकला के कोसत-कोसत छोड़ेके स्थिति में आ गइल रहले हा। जइसहीं दीया-दियरी के दिन बहुरल कि उनुकरो मन हरियरा गइल आ अब त चानिये चानी बा। साँच कहीं त बरियार आदिमी ना होखे. समय होखेला। समये घाव देला आ ऊहे भरबो करेला।
दिवाली के परब नगिचाइल बा बाकिर मन में ऊ उत्साह नइखे। मन नइखे होत कि टीवी के समाचार देखल जाव। एगो डर समाइले रहता। सीमा पर भा कश्मीर से कवनो दुखदायी खबर जनि आओ। अइसना में जब केहूँ पाकिस्तानियन के तरफदारी करेला भा असहिष्णुता के बात करेला त हमरा नजर का सोझा जइसे सुग्रीव आ जाले। बड़ भाई दुश्मन के पिठियावत गुफा में ढुकि गइल आ साहेब दुआरी प एगो बरियार पत्थर ओठँघाके किष्किंधा लवटि अइले आउर निश्चिंत गद्दी पर बइठि गइले। आजु-काल्ह जेकरे के देखीं, शुरू हो जाता। स्वतंत्रता आ स्वच्छंदता के अंतर लोग भुलाए लागल बाड़े, कर्ट्सी-मैनर के त बाते छोड़ दीं। बढ़िया समय ना कहाई। तबो हर स्थिति में दिवाली धूमधाम से मनो- ईहे हम चाहबि। स्वदेशी से देश के भावना जुड़ रहल बा। देश अपना थाती के पहचाने आ याद करे लागल बा। ई शुभ बा। नीमन दिन अब दूर नइखे। हम त ईहे शुभकामना करबि कि जइसे दीया-दियरी के दिन बहुरल ओसहीं हर मनई के दिन बहुरो, समाज के समरसता भंग करेवाली प्रवृत्ति के विनाश होखो आ सभका मन में प्रेम, सम्मान आ सद्भाव के उजास होखो।
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6.
चले दीं, प्रयोग बहे दीं धार
काल्हु “ये दिल माँगे मोर” पर बहस होत रहे। हम कहलीं कि भाई ‘मोर’ का जगहा ‘और’ कहलो पर त कुछ बिगड़ी ना। फेर काहें एकर ओकालत करतारे लोग। हर भाषा में लिखे-पढ़ेवाला लोग विदेशी शब्दन का मोड़ पर कुछ देर रुकिके सोचेले, काहेंकि धड़ल्ले से एकर प्रयोग कइला के मतलब बा व्यंग-बौछार के शुरुआत के नेवता। इहाँ का इंगलैंड में पैदा भइल रहीं....जी, एंग्लो इंडियन हईं.... इहाँ का लेखन पर उत्तर आधुनिकतावाद के असर बा....। एह तरह के जुमलन का अलावा कुछ ना मिली त एगो बिदेशी मीडिया के दिहल अपमानजनक शब्द ‘हिंगलिश’ त जरूरे सुने के मिल जाई। हमरा सबसे खराब हिंगलिश लागेला, जवनाके चार भाग में एक भाग हिंदी(हिं) आ तीन भाग अंग्रेजी (ग्लिस) बा। कहनाम (ध्वनी) सीधा बा कि एह भाषा के आधारभूत संरचना माने रीढ़ के हड्डी अंग्रेजी बिया आउर बाकी सभ हिंदी। एह सोच के चलावेवाला आ सँकारेवाला- दूनो लोगन के बहादुरी आ स्वाभिमान के जतना बड़ाई कइल जाव, कमे कहाई। ए घटिया शब्द के वकालत करेवालन के ई काहें ना बुझाला कि खुद अंग्रेजिए में 20 प्रतिशत शब्द ओकर बा आ शेष 80 प्रतिशत विश्व के अउर भषन के। तब ओकरा के कहल जाई ‘इंविश्व’? कवनो अइसन भाषा नइखे, जवना में बिदेशी शब्दन के प्रयोग सँकारल नइखे गइल। हमनी किहाँ लमटेन, रेल, अस्पताल, गिलास, बर्तन, कुर्सी, कफन, गबन, टेबुल, बेंच, पुलिस, मजिस्ट्रेट- ढेर अइसन शब्द बाड़े स, जवन भोजपुरी में प्रयुक्त होके भोजपुरिए बन गइले सन। जब उहनी के अपनावे में हमनीका तनिको ना सकुचइलीं जा त, आजो कुछ नया शब्दन के अपनावे से परहेज ना करेके चाहीं। हँ, एहमें सावधानी जरूरी बा। ओही नया शब्दन के अपनावल जाव, जेकर हमनी किहाँ विकल्प नइखे। अब रात खातिर नाइट लिखल-बोलल जाई त कहीं से न्यायसंगत ना कहाई। ई हास्यास्पद होई आ खतरनाको। हम त कहबि कि अनुवाद से भरसक बचे के कोशिश कइल जाव। जरूरी विदेशी शब्द कुछ दिन में अपने आप भोजपुरी बन जइहें सन। कुछ त बेंच से बेंच आ पुलिस से पुलिसे रह जइहें सन आ कुछ ग्लास आ लैटर्न शब्द से गिलास आ ललटेन (लमटेन) हो जइहें सन। एह स्वीकार से हमनी के भोजपुरी भाषा के स्वरूप में व्यापकता आ अंतर्राष्ट्रीयता के भी समावेश हो जाई। एहसे हम त ईहे कहबि कि बिदेशी शब्द अपनाईं बाकिर सम्हरि के।
एगो अउरी बात। भाषा के प्रयोग पर बतोबरन के खूब असर होला। एहसे जो अंग्रेजी शब्दन के कुछ जदो (ज्यादा भी) प्रयोग मिल जाए आ ऊ स्वाभाविक लागे त नाक-भौं मत सिकोरीं सभे। ई समय के माङ बा, दकियानूसी से काम ना चली। समय ओह प्रयोगन के खुदे चलाई भा उड़ा दी। अभी जरूरत बा जादा से जादा आ गुणवत्ता से भरल लिखल-बोलल। चलें दी प्रयोग बहे दीं धार।
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जन्म: बड़कागाँव, सबल पट्टी, थाना- सिमरी
बक्सर-802118, बिहार
जनम दिन: 28 फरवरी, 1962
पिता: आचार्य पं. काशीनाथ मिश्र
संप्रति: केंद्र सरकार का एगो स्वायत्तशासी संस्थान में।
संपादन: संसृति
रचना: ‘कौन सा उपहार दूँ प्रिय’ अउरी ‘फगुआ के पहरा’
ई-मेल: rmishravimal@gmail.com
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