ई काहे? - कनक किशोर

भोजपुरी में खूब लिखात बा। हर विधा पर कलम चल रहल बा। नीक जबून सब बा। रहबो करेला सब साहित्य में। ई कवनो नया नइखे। बाकिर समय के साथ-साथ साहित्य के मूल्यांकन होखे के चाहीं। कवनो नया चीज आवता त पाठकीय प्रतिक्रिया आवे के चाहीं। ऐकरा से हमार साहित्य कतना पानी में बा, कतना ओकरा लोक स्वीकार्यता मिलल बा पता चलेला। समाज साहित्य से का चाहता पता चलेला। ओही अनुरूप साहित्य कदम बढ़ावेला।
पाठक के नब्ज पर साहित्य के हाथ ना रही त ऊ कबो लोक साहित्य ना बन सके। ऐह खातिर कवनो साहित्य के सम्यक मूल्याकंन जरूरी बा। जेकर भोजपुरी साहित्य में अभाव बा। अइसन नइखे कि एह दिशाई काम नइखे भइल। समय समय पर कुछ काम भइल बा, आजो होता बाकिर ओकरा के यथेष्ठ ना कहल जा सकेला। कवनो साहित्य के विकास में ओकर सम्यक मूल्याकंन के योगदान ओह साहित्य के तउले खातिरे जरूरत नइखे ऊ नवांकुर लेखक के पथ प्रदान करेला, शोधार्थी के मदद करेला, पुरोधा के पहचान प्रदान करेला साथे साथ साहित्य कतना पानी में बा उहो बतावेला।
ई एगो कड़वा सांच बा, थोड़े तीत लागी, बाकी सांच ह भोजपुरी में पढ़निहार के कमी बा। ओकरे नतीजा बा कि भोजपुरी पत्र पत्रिकन पुस्तकन के पाठक उपलब्ध नइखे हो पावत। पच्चीस करोड़ बोले वाला आ सैकड़न संस्थन से जुड़ल भाषा काहे अपना दशा पर रोवे खातिर बाध्य बा? कवनो संस्था अपना पगड़ी पर बेसी आ भोजपुरी माथे पगड़ी पर कम ध्यान दी ऊ कबो माई भाषा के कल्याण ना कर सके।
कबो एह पर विस्तृत चर्चा होई।

जय भोजपुरी।
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कनक किशोर

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