भोजपुरी खातिर नेवछावर चौधरीजी - डॉ० ब्रज भूषण मिश्र

भोजपुरी खातिर आपन संपूर्ण जीवन नेवछावर कर देले रहीं चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह जी। भोजपुरी के नीने सूतत जागत रहीं। भोजपुरी के साहित्य के कइसे बढ़ंती होखे, एकर फिकिर उहाँ कै लागल रहत रहे। उहाँ के भोजपुरी के कथाकार आ एकांकीकार के रूप में त प्रसिद्धि रहबे कइल, उहाँ से शायदे कवनो विधा छूटल होई, जवना में उहाँ के कलम ना चलल होखे। गीत, गजल, कविता, प्रबंध काव्य, निबंध वगैरह कम ना लिखनी। बाकिर उहाँ के 'भोजपुरी साहित्यकार दर्पण' आ 'भोजपुरी इन्साक्लोपीडिया' बड़ा महत्व के काम बा आ भोजपुरी साहित्य के इतिहास लेखकन खातिर आँख के काम करत बा।
पं. गणेश चौबे के 'भोजपुरी प्रकाशन के सइ बरिस' के समेटत उहाँ का ओकरा के अद्यतन करे के उतजोग कइले बानी। भोजपुरी कहानियन के संदर्भ सूची 'भोजपुरी कथा कोश' में लगभग पचपन सै कहानियन के सूचीबद्ध करके शोधार्थियन खातिर बड़हन काम कइले बानी।
अपना जिअते जी उहाँ का लगभग पचीसहन किताबन के लिखनी आ छपवइनी। उहाँ के अप्रकाशित कृतियन के उनकर जेठ बेटा आ साहित्य में पिता के विरासत के आगे बढ़ावे वाला कनक किशोर जी लगातार छपवा रहल बानी। एह से उहाँ के समग्र रचना एके जगह उपलब्ध हो जाई आ ओह पर विमर्शपूर्ण सामग्रियो मिल जाई। चौधरी जी के पहिचान हमरा उहाँ के कथा साहित्य से भइल। 
पुस्तकाकार चौधरी जी के तीन कहानी संग्रह छपल बा 'बड़प्पन', 'सही मंजिल' आ 'बेगुनाह' जवना में लगभग उनचास गो कहानी संकलित बा। चौधरी जी लगभग सौ से ऊपर कहानी आ लघुकथा लिखले रहीं। आरोही रचनावली के भाग-1, जवना में एक सौ चउदह गो कहानी आ लघुकथा संपादक जितेन्द्र कुमार जी संकलित कइले बानी। बहुत कहानी ढूँढ़ा नइखे पावल। अब जे कहानी सब सोझा आइल बा, ओह में समाज के लांगट चित्रण बा। घर परिवार से लेके समाज आ देस के असतर तक जेतना उरेब-फरेब बा, सब पर कथाकार के नजर बा। एह उरेब आ फरेब के कारकन के लंगटिया के सोझा राखे के काम कहानीकार चौधरी जी कइले बानी, जवन कतहीं कतहीं अति यथार्थवादी हो गइल बा। आलोचक आ समीक्षक लोग चौधरी जी के कहानियन पर सपाटबयानी के आरोप लगवले बा बाकिर यथार्थ वादी भइला के कारण सपाटबयानी आइल सोभाविक बा।
चौधरी जी के साहित्यकार के दोसर रूप बा नाटककार आ एकांकीकार के। चौधरी जी के दू गो नाटक, 'साक्षात लक्ष्मी' आ 'विश्वासघात' छपल बा, जबकि चार गो एकांकी संग्रह 'आदमियत', 'अपराजित', 'अनुमन्ता' आ 'धर्मी'। 'साक्षात लक्ष्मी' अकेला नाटक बा, जबकि 'विश्वासघात' में दू गो नाटक 'न्याय' आ 'होशियारी' संकलित बा। चार एकांकी संग्रह में कुल मिला के बावन गो एकांकी के संकलन बा। 
'साक्षात लक्ष्मी' पहिला नाटक बा जवन चौधरी जी लिखले रहींं। एह नाटक के डॉ० गदाधर सिंह जी 'भोजपुरी के नाट्यकृति साक्षात लक्ष्मी: एक दृष्टि' में एह नाटक के यथार्थवादी नाटक मनले बानी जेवन दहेज के समस्या लेके लिखाइल बा। बाकिर , हमरा समझ से ई नाटक यथार्थ के धरातल से पैदा त भइल बा, मगर नायिका (पत्नी) रधिया द्वारा नायक (पति) चितरंजन के चरित्र आ विचार बदल के आदर्शवादी परिणति देले बा ।
'विश्वासघात' के दुनों नाटक लोककथा पर आधारित बा आ जन शिक्षा के काम कर रहल बा । लोक आदर्श प्रस्तुत करेवाला ई दुनों नाटक सहजता से पाठक आ श्रोता के मन में जगह बना लेत बा। दृश्य छोट-छोट आ संवाद लोक प्रचलित भाषा में और छोट बा। जवना से मंचित कइल आसान बा। 
चौधरी जी के लिखल एकांकियन के कुल संख्या बावन बा, जवन आरोही रचनावली, भाग-2 में संकलित बा। एक तरह से नाटक के लघु रूप हऽ, जे प्रायः एके अंक के होला।। डॉ. तैयब हुसैन पीड़ित 'चौधरी जी, के एकांकी के विषय-वस्तु पर विचार करत बतवले बानी कि ओह में विविधता बा। ओकर कथानक ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, मिथकीय से ले के सामाजिक सरोकारन से जुड़ल बा। एकांकी में दृश्य संयोजन में कठिनाई आ पात्र के बेमतलब के संख्या के कमी के रूप में देखवले बानी, जे एक सीमा तक सही बा। एकांकीकार का रंगमंच के अनुभव के अभाव बा। जे मंचन करी, ऊ जरूरत के मोताबिक ओह में फफेर बदल आ सुधार कर ली, ओकरा ओतना छूट रहेला। असल बा एकांकीकार जे संदेश देवे के चाहत बा, ओकर जे उद्देश्य बा ऊ संप्रेषित होखे के चाहीं।
चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह पद्य साहित्य के सिरजन कम नइखीं कइले। उहाँ के कविता साहित्य के विविध फॉर्मेट में लगभग एगारह-बारह गो किताब छपल बा। अपना साहित्यिक जीवन के शुरुआत आन साहित्यकार लोग जइसन उहों का 1960 ई. में 'माटी के महक ' गीत संग्रह से कइले रहीं। उहाँ के दोसरको किताब 'गीत जिनगी के ' ( 1978 ई.) कविते पुस्तक रहे। 
'माटी के महक एक सौ गीतन के संग्रह रहे। एह गीतन के बारे में प्रसिध्द कवि प्रणयी जी लिखले बानी, "एह में भोजपुरी माटी पऽ उगल भावन के कविता के विषय नइखे बनावल गइल, बलुक एह में सँउसे देस कऽ झॉकी मिल रहल बा। हास्य, वीर आ सिंगार के पायल झनकार के साथ मिल के चौधरी जी के हिरदय के अनुभूति सदेह हो गइल बा। पद्य में उहाँ के तिसरकी किताब 'नया एगो सूरज' गजल संग्रह रहे, जे भोजपुरियो खातिर तिसरके गजल संग्रह रहे। 'भोजपुरी गजल के विकास यात्रा' नामक किताब में जगन्नाथ जी चौधरी जी के गजलन पर विचार करत लिखले बानी, "आधुनिक भाव-बोध से भरल एह गजलन में सामाजिक विसंगतियन के बड़ा विशद् चित्र बा आ व्यवस्था बदले खातिर छटपटाहट आ उद्घोष बा। कथ्य के व्यापक आयाम आ कहे के ढंग संग्रह के जानदार बना देता।" छत्तीस गजलन के एह संग्रह में अरबी , फारसी , उर्दू के शब्दन के भरपूर प्रयोग बा। 
चौधरी जी अपना गजलन में 'बसर' उपनाम रखले बानी त अउर कविता पुस्तक में 'आरोही'। 'आरोही हजारा' चौधरी जी के एक हजार दोहन के संकलन बा। मात्रिक छंदन - दोहा, सोरठा आ बरवै के अलग - अलग संकलन चौधरी जी देले बानी। दोहा संकलन के काव्यशास्त्रीय भूमिका (गमक) लिखत प्रसिध्द संगीतज्ञ महेन्द्र सिंह 'प्रभाकर' एकरा काव्य सौष्ठव के प्रशंसा तऽ कइलहींं बानी आ ई मनले बानी कि एह में अलंकारन के भरमार बा। विषय वस्तु पर विचार करत लिखले बानी, "एह संग्रह में नीति, राजनीति अउर समसामयिकता के ज्वलंत भावना के त्रिवेनी प्रवाहित कइल गइल बा।" एह कथन से असहमति के सवाल नइखे । 
'सहस्रदल' एक हजार सोरठा के संग्रह हऽ। सोरठा दोहा के उलट देला से बन जाला। एकरा विषम चरण (1, 3) में एगारह मात्रा होला आ तुक मिलेला। जबकि सम चरण (2,4) तेरह-तेरह मात्र के होला। एह में तुक जरूरी ना होखे, तबहूँ केहू - केहू तुक मिलावेला आ केहू - केहू उर्दू अस स्वरांत मिलावेला। संज्ञीतज्ञ महेन्द्र सिंंह ' प्रभाकरभाक ' एह किताब के संगीत आ काव्य पक्ष के ऊपर भूमिका में विचार करत ई मनले बानी कि गोस्वामी तुलसीदास अस आरोही जी के सोरठन में तीनो तरह के स्थिति बा। उहाँ का बतवले बानी कि आरोही जी के सोरठन के कइसे लोकधुन में गावल जा सकेला। चौधरी जी के कवि आरोही एक हजार बरवै के संग्रह 'अजस्र धारा' 2005 ई. छपल। बरवै के हर पाँति में विषम चरण में बारह मात्रा आ सम चरण में सात मात्रा होला आ अंत में गुरु - लघु होला। डॉ. गदाधर सिंह एह पुस्तक के शुभकामना में संग्रह के बरवै सब पर बड़ा सटीक मंतव्य देले बानी, "चौधरी जी के वर्तमान रचना में युग जीवन के परिवर्तन से बदलत काव्य प्रवृति आ जीवन पद्धति के स्पष्ट देखल जा सकेला। हमार कवि लोकहित के कायल बा आ प्रसंगानुसार दू - चार सांकेतिक रेखो सभन से समग्रता के आभास देवे कऽ प्रयास करत बा।
'बरवै ब्रह्म रामायण' बरवै छंद मेंं 'अजस्र धारा' से पहिले लिखाइल रहे, जवन 'ब्रह्म रामायण' के कुछ मार्मिक प्रसंगन पर प्रबंधात्मक रचना बा। छोटहन काया में लिखाइल एह कृति में प्रबंध तत्व के अभाव लउकत बा। प्रबंधात्मक दू गो अउर कृति बा आरोही जी के - 'कुँवर गाथा' (2004 ई.) आ ' जयघोष ' (2008 ई .)।
'कुँवर गाथा' मेंं छंदन के विविधता बा। कुँवर काव्यन में उनका जवना सहयोगी लोग के चरचा छूटल बा, ओह पर आरोही जी के फोकस बा।कथा क्षीण बा , प्रबंधात्मकता के अभाव बा। एह कमी के पूरा 'जयघोष' में उहाँ का कइलीं । बारह शीर्षकन - समर्पण, जगदीशपुर, राजगद्दी, अवदान, मंत्रणा, प्रतिज्ञा, जंग, सवैया, कवित्त, सोरठा, दूरदृष्टि आ पहली जीत में कुँवर कथा एक सूत्र मेंं बन्हाइल बा। एह में कुँवर के उद्दात चरित के खड़ा कइल गइल बा। एकरा अलावे आरोही जी के दोहा संग्रह 'दूब', हाइकु संग्रह 'नीम' आ कविता संग्रह 'ब्रह्मा' निकलल बा, जे हमरा देखे के नइखे मिलल।आखिर में हम कहे के चाहत बानी कि चौधरी जी बड़ा मेहनत से इन्साक्लोपीडिया आ कथाकोश खातिर सूचना एकत्र कइले रहीं। एह दुनों के सम्पादक लोग का मेहनत करे के चाहत रहे, जवना से ओह में जवन व्यतिक्रम देखाई देत बा, ओह के दूर कइल जा सकत रहे। बाकिर, चौधरी जी आपन जीवन के भोजपुरी खातिर नेवछावर करके जेतना सामग्री परोस गइल बानी, ओह खातिर उहाँ के आत्मा के कोटि-कोटि धन्यवाद आ जे लोग उहाँ के साहित्य के सार्वजनिक कर रहल बा, ओह के साधुवाद।
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डॉ० ब्रज भूषण मिश्र मुजफ्फरपुर
मो०- 9905030520
मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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