दो टूक बात करे वाला - महेन्द्र प्रसाद सिंह

बेबाक आ दू टूक बात करे वाला रहनी साहित्यकार चैधरी कन्हैया प्रसाद सिंह जी। उहाँ के मंच से बोलत जब सुनलीं तऽ मन में विचार आइल कि साहित्य सृजन में लागल हमरा अइसन तमाम लोग के अइसन आलोचक के नियरे राखे के चाहीं जे बिना कवनो लाग लपेट के गलती के बखिया उधेड़ के रख देत होखे। हमहूँ उनकर एगो बात के गिरह पार लेनी। भोजपुरी में ‘ही’ के भा ‘भी’ के प्रयोग कबो ना करीं। फोनो पर अकसर बात होई। बड़ भाई अस उहाँ के हमरा से बात करीं। सनेह में सउनाइल सलाह पाके मन खुश हो जात रहे। अक्सर संदर्भ रहत रहे 'विभोर', ओकर विषय वस्तु, अगिला भा पिछला अंक आ कवनो नया लेखन। सोझा भेंटइनी, परनाम-पाती भइल तऽ असीरबाद सरूप दू चार गो किताबो भेंटा गइल।
उहाँ के खोजी रचनाकार अस एकहूँ नाटक, कथा-कहानी, कविता, लेख लिखे वाला के नाम, पता, फोन नम्बर आदि एकट्ठा करत एगो लमहर डेटा बेस तैयार कइले रहीं। भोजपुरी नाटकन के संदर्भ में, एगो उहाँ के लेखो छपल रहे विभोर के पँचवां अंक में। ओह में नाटककार के नाँव, नाटक (प्रकाषित-अप्रकाषित) आ अभ्युक्ति के कालम रहे। हमरा जनला में डा. नन्द किशोर तिवारी जी के भास कृत अनुदित नाटकन के छोड़ि के ओकरा में 129 भोजपुरी नाटककारन के विवरन रहे। फेनु छठवां अंक में चिट्ठी का रूप में आपन नाटकन के जानकारी देले रहीं। ओह में उहाँ के छपल नाटकन 'साक्षात लक्ष्मी', 'आदमियत' आ पत्र-पत्रिकन में प्रकाशित एकांकियन के जानकारी देले रहीं जवना में शामिल बा 'छँवड़ा चोर', 'हँसले घर बसेला', 'अपराजित', 'परिमार्जन', 'न्याय', 'आकाशगंगा', 'होशयारी', 'बहुत अच्छा', 'गोबर पर के पइसा', 'लालपरी', 'रफूगर', 'बदरायन संबंध', 'सत्यवान', 'संत सदाशिव' आ 'तीन दिन बाकी'।
चौधरी जी के रंगश्री द्वारा प्रस्तुत नाटकन पर एक बेर कहनी, ”तू खाली अपने नाटकवा के मंचन मत करऽ। अउरीयो लोग के लिखल करऽ, तबे तऽ दुनिया जानी कि भोजपुरी कतना समृद्ध बा।“ हमहूँ कहनी भोजपुरिया नाटककार लोग भोजपुरी रंगमंच का सीमा के समझ-बुझके, मने-मन दर्शक दीर्घा में बइठ के लिखे तब नू नाटक मंचन लाएक होई। अइसन नाटक भोजपुरी में गिनल गुथल बा जवना के मंचन करते बानी। उनकर एगो बेवाक सवाल का रूप में उत्तर रहे। 'जब कुल्हि नाटककारे कर दिही त निर्देशक का करीहें?' 'तू निर्देशक हवऽ ओकरा के मंचन जोग बनावऽ'। चौधरी कन्हैया सिंह जी के ई बात हमरा मन में हरदम दर्ज रहेला। ओकरा बाद से हम उनकर एह आदेश रूपी सलाह के अनुज का रूप में अनुपालन करे के कोसिस में लागल बानी। सरग से उहाँ के असीरबाद मिलल तऽ कम से कम हमार नाट्य संस्था 'रंगश्री' उहाँ के लिखल धारदार, न्याय व्यवस्था पर चोट करत, ठेठ भोजपुरी कहाउत आ शब्दन से भरल हास्य नाटक 'न्याय' के संगे अन्याय ना होखे दिही।
मैना के एह विषेशांक का बहाने बड़ भाई के पुनः नमन।
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महेन्द्र प्रसाद सिंह, 
अध्यक्ष 'रंगश्री'
सी-304, इस्पातिका अपार्टमेंट्स,
प्लाॅट सं-29, सेक्टर-4, द्वारका,
नई दिल्ली-110078
11.12.2020
मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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