चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह: जाये वाला के ईयादे रह जाला - अंकुश्री

बनारस से प्रकाशित ‘भोजपुरी कहानियां’ के संयुक्तांक मई-जून, 1971 में हमार एगो कहानी ‘सगुन ना उठल’ छपल रहे। ओही संदर्भ में चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह हमरा लगे चिठी लिखले रहस। ओह घरी हम अशोक नगर, छपरा स्थित आपन पूर्वज के मकान में चार-पांच बरिस से रहत रहनी। उनका से पत्राचार के ऊ जे सिलसिला शुरू भइल, मोबाइल फोन के दौर आवे के पहिले तक जारी रहल। मोबाइल के दौर शुरू भऽ गइला के बाद फोने पर बातचीत होखे लागल। मोबाइल फोन पर उनका से बात तऽ ढ़ेर भइल, जल्दियो-जल्दी बात भइल, बाकिर ओह संवाद के कवनो अभिलेख ना रह पाइल। भारतीय ज्ञानपीठ के पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ के अप्रैल, 2015 अंक में छपल हमार लघुकथा ‘नदी और पहाड़’ पर सैकड़ों प्रतिक्रिया मिलल, बाकिर सब फोन पऽ। लघुकथा के साथे हमार फोन नम्बर छपल रहे, पता ना। लेखकन के रचना के प्रतिक्रिया हम कबहीं मोबाइल फोन पर ना देवेनी काँहे कि चिठी में लिखल बात रह जाला, ओकर ईयाद रह जाला। बाकिर फोन पर हवा में भइल बातचीत हवा लेखा उड़िया जाला। फोन पर वर्तमान भले अच्छा लागेला, बाकिर ओकर कवनो भविष्य ना रह जाला। उनकर चिठी पहिले जापानी फारम, आरा के पता से आवत रहे। बाद में पता बदलत गइल।
चौधरी कन्हैया जी सन्दर्भ ग्रन्थ तइयार करत रहनी ‘भोजपुरी साहित्यकार दर्पण’ ओकर तीन भाग छपल बा। चउथो भाग के उनकर तइयारी चलत रहे, जे पूरा ना हो पाइल। ओकर शायद पहिलका भाग में हमार सन्दर्भ देले बानी। उंहा के एगो आऊर बहुत बड़हन काम शुरू कइले रहनी। ऊ रहे ‘भोजपुरी कथा कोश’ के निर्माण। करीब पांच-छव बरिस से ई काम में उंहा के लागल रहीं। उनकर इहो काम अधूरा रह गइल, जे उनकरा गइला के बाद उनकर बड़ बेटा कनक किशोर जी पूरा करवलन।
भोजपुरी के हर विधा में चौधरी कन्हैया जी आपन कलम चलवले बानीं। दू दर्जन से जादे एकांकी तऽ लिखबे कइनी, हर छन्द में आपन रचना लिखनी। दोहे जइसन सोरठा होला, बाकिर ऊ दोहा लेखा सरस ना लागे। उंहा के एक हजार सोरठा और एक हजार बरवै लिखनी। उनकर ‘बरवै ब्रह्म रामायण’ बरवै छन्द के बहुत अच्छा नमूना बा। कवित, सवैया, हायकु सब लिखनी उंहा के।
शिवपूजन लाल विद्यार्थी (आरा) के अनुसार, ‘‘विगत सदी के पूर्वार्द्ध से इंहा के सिरजन के जे सफर शुरू भइल, ऊ वर्तमान सदी में भी ओही जोस-खरोस आ रफ्तार से बिना ब्रेक-विराम के लगातार धुआंधार चल रहल बा। कन्हैया जी फुल टाइमर लेखक हईं। सूतत-जागत, उठत-बइठत, सुबह-सांझ, रात-दिन इंहा के कलम अबाध गति से चलत रहेला। इंहा के रचनाशीलता के ई निरंतरता हऽ कि रचनन के जइसे ढेरी लगा दिहले बानी…’
पंडित राहुल सांकृत्यायन लेखा चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह खूब लिखनीं। राहुल जी के साहित्य पर्यटन से जुड़ल रहे आ चौधरी जी के साहित्य भोजपुरी में रहे। चौधरी कन्हैया जी के ई बहुत बड़ विषेषता रहे कि उंहा के भोजपुरी में खाली लिखते ना रहनी, बलुक बोलतो रहनी भोजपुरिये में आ सोचतो रहनी भोजपुरिये में। उनका से जे मिलत रहे, उनकरो से ऊ भोजपुरिये में बतिआवत रहस।
विधा के विविधता से चौधरी कन्हैया जी के प्रयोगधर्मिता के पता चलत बा। ई रचनाकार के बहुत बड़ गुण हऽ। ।शिवपूजन लाल विद्यार्थी कहत बानी, ‘‘…ईंहा के दोसर खासियत लेखन का दिसाई इंहा के प्रयोगधर्मिता बा। सामान्य रचनाकार से कुछ अलग हटि के लिखे के, कुछ नया करे के छटपटाहट ईंहा में बराबर रहल। इहे छटपटाहट आ बेचैनी के परिणति हऽ आरोही हजारा, बरवै ब्रह्म रामायण, सहस्त्र दल, भोजपुरी साहित्यकार दर्पण (तीन भाग में)…।’’
चौधरी कन्हैया जी हजार दोहा आउर हजार सोरठा लिखले बानी, जे भोजपुरिये ना, हिन्दियो में एगो रेकाॅर्ड बा। ‘भोजपुरी साहित्यकार दर्पण’ के तइयारी आ ओकरा के तीन खण्ड में छपावल सांचहूं एगो बड़हन काम बा। भोजपुरी शोधार्थियन खातिर ईंहा के एगो बड़हन उपहार दे के गइल बानी। ‘भोजपुरी कथा कोश’ भी एगो बड़हने काम नधाईल रहे। कवना पत्र-पत्रिका के कवना अंक में आ कवना पृष्ठ पर लेखकन के भोजपुरी कथा/लघुकथा छपल बा - ई सूचना उंहा के करीब आधा दशक से जमा करत रहनी।
जब एकांकी लिखे के शुरू कइनी त चौधरी कन्हैया जी ढ़ेर एकांकी लिख डलनी। ‘अपराजिता’ में 16 एकांकी {हंसले घर बसेला, संत सदाषिव, सर्वोत्तम धर्म, बदरायन संबंध, बहुत अच्छा, अनमोल रतन, सत्यवान, संघे शक्ति, तीन दिन बाकी, चोर के मुंह करिया, फर्ज, अपराजित, लालपरी, रफूगर, देवता आउर ईमानदारी के फल} आ एही तरह ‘अनुमन्ता’ में 16 एकांकी {अमानत, आँख अछइत आन्हर, इन्द्रजाल, गुलाब बन, ज्ञानी, चतुराई, जाल, ताल-मेल, निरावरण, परोपकारी, प्रायष्चित, बेखबर, शक, संकल्प, सरकस (अदमनीय) आउर सीख} संकलित बा। ई सब एकांकी पहिले कवनो न कवनो भोजपुरी पत्र-पत्रिकन में छप चुकल रहे। 480 पृष्ठ के ’आरोही रचनावली भाग-2’ (संपादक अंकुश्री) में उनकर तीन नाटक आउर बावन एकांकी संकलित बा। एह संकलन के विमोचन 08 जुलाई, 2018 के जमषेदपुर में भइल।
वर्ष 2014 में छपल एकांकी संकलन ‘अनुमन्ता’ के पछिला आवरण पर शिव भजन प्रसाद बैरागी जी (पकड़ी चैक, आरा) चौधरी कन्हैया जी के परिचय देले बानी। चौधरी कन्हैया जी के जनम 2 जनवरी, 1941 के भोजपुर जिला के नोनार गांव (भाया पिरो) में भइल रहे। कृषि में स्नातक कइला के बाद उंहा के कृषि विभाग में योगदान कइनी आउर ग्रामीण विकास विभाग में प्रतिनियुक्ति पर रह के (आज के) झारखण्ड के कई जिलन में काम कइनी। जनवरी, 1999 में 58 बरिस के उमिर में सेवानिवृत्त होके उंहा के सोरह बरिस ले स्वतंत्र रूप से लेखन के काम कईनी। भोजपुरी साहित्य के सम्बृद्धि में उनकर बहुत बड़ा योगदान बा।
सेवानिवृत्ति के बाद उंहा के पकड़ी (आरा) में स्थायी रूप से रह के भोजपुरी साधना में लागल रहीं। भोजपुरी सम्मेलन में उंहा के जरूर जात रहीं। रांची में कांटाटोली लगे नेताजी नगर वाला घर में उंहा के अक्सर आवत रहीं। ऊ जब रांची आवस त फोन से बतावस, ‘‘आठ दिन से रांची में बानी, तहरा से भेंट ना भईल।’’ कबो कहस, ‘‘हमरा रांची अइला दस दिन भ गइल, अबहीं ले तू भेंट करे ना अईल?’’ पहिले उनकर बड़ बेटा कनक किषोर के माध्यम से विभाग में उनका अइला के सूचना मिलत रहे. बाद में जब हाथे-हाथ फोन के सुविधा भऽ गइल तऽ ऊ सीधे फोन कर देत रहस। जब हम आफिस से सीधे उनका से मिले उनका घरे जात रहीं त घर में कहस, ‘‘अंकुश्री आइल बाड़न। आफिस से सीधे आवत बाड़न।’’ एकर मतलब रहे कि खाली चाय-बिस्कुट से काम ना चली, कुछ नस्तो आवे के चाहीं। अल्पाहार के बादे चाय आवत रहे। चौधरी कन्हैया जी के बेटा-बेटी के छेंका, तिलक, बिआह आ प्रीतिभोज में शामिल होखे के हमरा बहुत बेरा मवका मिल। भीड़ो-भाड़ में ऊ हमरा के अपने लगे बइठावस आ आसपास के लोगन से हमार परिचय करावस।
एगो बेटी के शादी में नेताजी नगर में हम अपना बेटा अंकित प्रियंवद, जे अबहीं आन्ध्रा बैंक (अब यूनियन बैंक) मुम्बई के जोनल आफिस में पदाधिकारी बाड़न, के साथे गइल रहनी। भोजन के बाद उंहा पानो के बेवस्था रहे। ओह घड़ी हम पान खात रहनी। हमरा के पान खात देख के चौधरी कन्हैया जी कहनी, ‘‘तू बरिस भर में पान खाये में जतना खरचा करत होखब, ओतना में एगो भोजपुरी के किताब छप जाई।’’ उनकर ई बात हमरा लाग गइल। हम नियमित पान खाईल छोड़ देनी, अब कबो-कभार भले खा लेवेनी।

चैधरी कन्हैया जी के रांची प्रवास में उनका से अंतिम बेर 21 जून, 2014 के हमरा भेंट भइल रहे। उनका के हम बतवनी कि पछिला साल झारखण्ड सरकार हमरा के हिन्दी सेवा खातिर राज्य स्तरीय सम्मान से सम्मानित कइलस हऽ। ई समाचार सुन के उंहा के खुश ना भइनी। उंहा के कहनी, ‘‘तू सम्मान लवटा काहे ना देल?’’ एही क्रम में उंहा के डा0 ऋता शुक्ला आ प्रो0 जंगबहादुर पाण्डेय के नांव लेहनी।
ओह भेंट में भोजपुरी पत्र-पत्रिकन के चर्चा भइल। ‘भोजपुरी माटी’ (कोलकाता) के लेखकीय प्रति ना मिलला के बात बतवनी। दोसरो भोजपुरी पत्रिकन के पत्राचार में कमजोर रहला पर चर्चा भइल। प्रो0 रामजनम मिश्र के भोजपुरी तिमाही ‘माई’ के भी बात निकलल, जेकर कवनो अंक के उंहा के संपादन कइले रहीं चाहे करे के रहीं।पैंतालिस बरिस से साहित्यिक आउर पारिवारिक तौर पर जे परिचित रहस, उनका चल गइला पर उनकर ईयाद तऽ बहुत आई, काहे कि जाये वाला तऽ चल जाला, बाकिर उनकर ईयादे रह जाला।
----------------------------------
अंकुश्री
प्रेस काॅलोनी, सिदरौल,
नामकुम, रांची-834 010
मो0 8809972549
E-mail : ankushreehindiwriter@gmail.com
मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.