बेवाक व्यक्तित्व के स्वामी: चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह 'आरोही' - कनक किशोर

सत्य के धरातल ठोस होला, कठोरो होला ऐही से ना तरल जइसन बह जाला, ना आपन स्वभाव अउर स्वरूप जल्दी बदलेला। जीतो सत्य के ही होला ई सबकर अनुभव हऽ। सत्य कड़ुआ त होखबे करेला ऐही से आदमी परहेज करेला सत्य सुनही सुनावे में ना ओकरा पंजरो में जाये में। चौधरी जी के व्यक्तित्व बहुत तक ऐही तरह के घर बहरा दुनो जगह रहे ई बात के अनुभव सभे कइले होई जे उनका के जानत रहे।
हम चौधरी जी के रचना अउर व्यक्तित्व पर कभी कुछ ना कहल चाहीं। कारण दुगो बा। पहिला चौधरी जी के ना कवनो वरिष्ठ साहित्यकार के रचना पर कमेंट ना कइल चाहिला चुंकि घर के अउर भोजपुरिया संस्कार ऐकर आदेश ना देला। ऐही से चौधरी जी के ना रहला के बाद उनकर जतना किताब आइल हा वोह में प्रबन्ध संपादक के हैसियत से उपलब्ध रहल बानी बाकिर ओह किताब पर प्रतिक्रिया नइखी देले। डॉ रामजन्म मिश्र जब 'चौधरी कन्हैया प्रसाद सिंह:इयादों के झरोखा से' स्मृति ग्रंथ निकाले लगनी तऽ कहनी कि तोहरो कुछ आवे के चाहीं बाकिर हम कन्नी काट के निकल गइनी। दुसर कारण बा हम अपना के ऐह योग्य ना समझी कि चौधरी जी के रचना पर मंतव्य दे सकीं। आज कलम उठावे के दूगो कारण बा। पहिला चौधरी जी के व्यक्तित्व के कुछ अनछुयल पहलू के सामने रखल।दुसर का वोही बहाने भोजपुरी हित के दू बात कर सकीं।

पारिवारिक अनुशासन

बाबूजी बड़ा अनुशासन प्रिय रहीं। स्वयं उनकर दिनचर्या के प्रत्येक भाग के समय निर्धारित रहे जे विशेष परिस्थिति में ही कतिपय कारण से टूटत रहे। परिवारो से अनुशासन के उम्मेदे ना राखत रहीं ओकरा खातिर बचपन से ही हमनी के सिखावत रहीं। जरुरत पड़ला पर कठोर रूप भी देखे के मिलत रहे।

तिलक-दहेज विरोधी

हमार पाँच बहिन बाड़ी सं। भूमिहार में तीलक दहेज के चलन जग जाहिर बा। परिवार में ओह समय एगो लइकी अभिशाप समझल जात रहे। पिताजी ऐह हद तक तिलक दहेज विरोधी रहीं कि जहँवा दहेज के माँग होई ओहिजा हम बेटी ना देब। पाँच बेटी के बाप के ऊ प्रतिज्ञा भगवान निबहलन। आज पाँचो बहिन अपना अपना घरे खुश बा लोग।

महिला शिक्षा के पक्षधर

सरकारी सेवा में रहे आ तबादला के कारण बहिन सभ के शिक्षा में की बार बाधा आइल परन्तु कभी हमरा साथे रख, कभी होस्टल में पाँचो बहिन के पूर्ण शिक्षित करअवलन।

आत्मनिर्भर परिवार

परिवार के लइका लइकी आ पतोह के कंधा पर अतना भार प्रारंभ से देत चल अइलन कि जब उनका कंधा पर भार पड़ल तो भार ना बुझाइल। बर बाजार से लेके हर दुनियादारी के काम करे के आदत बचपन से डललन जे आगे चल जीवन में बड़ा काम आइल।

सरकारी सेवा आ साहित्य सेवा

सरकारी सेवा में रहत साहित्य सेवा से अइसन जुड़ाव भइल कि पारिवारिक बोझ परिवार पर छोड़ आपन सरकारी कर्तव्य के निर्वाह करत दिन रात साहित्य सेवा उ लागल रहनी। जहां रहब उहां साहित्य साथ रही।उहा के जिला कृषि पदाधिकारी के रूप में डाल्टनगंज पदस्थापित रहीं। एगो हित ओहिजा पहिले से जिला आपूर्ति अधिकारी रहीं।ऊ एक दिन कलक्टर से परिचित करावत कहनी कि इहा के हमार मामा हई कृषि पदाधिकारी के रूप में पदस्थापित बानी। कलक्टर अंजुम साहब रहीं। परिचय होते बाबूजी पुछ देनी कि केवल नाम अंजुम है या कुछ साहित्यिक अभिरुचि भी है। एक वरीय पदाधिकारी से एह तरह के सवाल पर साथ गइल पदाधिकारी तऽ धक रह गइलन। बाकिर हमरा नजर में ई बाबूजी के बेवाकीपन आ साहित्य से लगाव के धोतक रहे। जहां रहनी उहां के हर साहित्यिक गतिविधि से जुड़ावे ना रखनीं अपना घर के भी एगो साहित्यिक संस्थान बना के रखनीं।

माई भाषा के अनन्य सेवक

भोजपुरी उनकर प्राण रहे। भोजपुरी खातिर जरुरत पड़ला पर मारा मारीयो उनका स्वीकार रहे। अपने उहां के जवन सेवा कइनी ऊ जग जाहिर बा बाकिर भोजपुरी के नया हस्ताक्षर आ शोधकर्ता के आपनो खिया पिया के आगे बढ़वनी। इहा तक की उनकर प्राणो भोजपुरी कविता सुनावत निकलल। कतना आदमी के भोजपुरी लिखे के प्रेरित कइनी, कतना के हिन्दी से भोजपुरी के ओर मोड़नी, खुद पीएचडी ना रहीं बाकिर करना शोध कर्ता के पीएचडी करें में मदद कइनी, कतना भोजपुरी पत्रिकन के रचना जोगाड़े में मदद कइनी ई गिनावल ना जा सके। अपना आप में भोजपुरी के विश्वकोश रहीं ई हम ना लोग कहेला।
ना काहू से दोस्ती,ना काहू से बैर
बाबूजी के प्रति आपन मन के भावना के शब्द रूप दे तानी जे निम्नवत बा।

स्मृति शेष बाबूजी

आज जब तू हमनी बीच ना रहल
फिर भी मन आ परिवार
एह बात के स्वीकार नइखे कर पावत
की तू हमनी के छोड़ गइल।
पग पग पर आज भी राउर
आदेश मार्गनिर्देश मिलते नइखे
आजो ऊ जीवन के आधार बा
राउर आशीर्वाद बा।
फिर कइसे कहीं स्मृति शेष
जब तन मन ना घरों में
राउर उपस्थित विराजमान बा।
*****

व्यक्तित्व

संसार के रउवा आपन आँख से देखलीं
संसार के आँख से अपना के कभी ना
साँच कहीं त संसारो के ना देखनीं
रउवा ऊ राही रहीं जे
आपन राह चलेला, आपन राह बनावेला
जेकर प्रतिफल रहे
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर।
*****

परास (पलाश)

रउवा परास हईं हमरा खानदान के
केकरो वरदहस्त पाके ना
जीवन के अनुभव के लेखनी से रंगत
भर गइनी भोजपुरी भंडार।
परास संसर्ग में बितल ई जिनगी
राउर ऋण उतार ना पायी
पर परासे जइसन जीये के कला
ता उम्र बरकरार रखब।
परास वन में हरियाली खतमो होखला पर
अनुराग के ललाई चरम पर होला
जे ओकर खुबसूरती बरकरारे ना रखेला
बढ़ा देला।
रउरा करम करे के सिखइनीं
परास के फूल देवता पर ना चढ़े
जीवन भर के साधना परास बन निभईनी 
रउरा परस भर से पारस बन जाइब।
जय भोजपुरी।
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कनक किशोर
राँची (झारखंड)
9102246536






मैना: वर्ष - 7 अंक - 120 (अक्टूबर - दिसम्बर 2020)

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