जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला
का करिहें भइया रखवाला।
जहाँ नदिये पानी पी जाई,
जहाँ फेड़वे फलवा खा जाई,
जहवाँ माली गजरा पहिरे
ऊ फूल के बाग उजरि जाला।
जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला।
जहाँ गगन पिये बरखा पानी,
धरती निगले सोना-चानी,
जहवाँ भाई-भाई झगड़े
उहवें सब बात बिगड़ि जाला।
जहाँ मेढ़िये खेतवा चरि जाला।
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मैनावती देवी श्रीवास्तव "मैना"
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