खाली बा देश - अरुण शीतांश

अहो खेतवो अभी खाली बा
देशवो अभी खाली बा
कबले खाली रही 
मनवा हमार।

मन में कईगो परानी बाड़ी जा
लोग बाड़न
उनकर भी मन खाली बा
खाली बा खलिहान
ओखर 
पोखर
सब खाली बा।

एह घरी 
रात दिन खाली बा
सामने के दरिया
आंखी सोझा थरिया
सब खाली बा
अक्षर ,शब्द, वाक्य
आ भाव खाली बा
देश के फूल में सुंगध खाली बा
खाली बा बाग बगीचा 
खाली बा
बेड गलीचा।
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लेखक परिचय:
जन्म: ०२.११.'७२
शिक्षा: एम. ए. ( भूगोल औरी हिन्दी में) एम लिब सांईस पी एच डी .एल एल. बी. 
प्रकाशन: दूगो कविता संग्रह, एगो आलोचना क किताब
संपादन: देशज नाँव क हिन्दी पत्रिका क संपादन, पंचदीप किताब क संपादन
कईगो भाखन में कबितन के अनुबाद
संप्रति: नौकरी
संपर्क: मणि भवन, संकट मोचन नगर, आरा ८०२३०१
मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 (अप्रैल - सितम्बर 2020)

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