चढ़ल उतर गइल - डॉ. हरेश्वर राय

हमार बाउजी जब अपना लइकाईं के बात बताइब त मन बहुत परसन्न हो जात रहे I लागे हँसी के फुलझड़ी छूटे। हँसत-हँसत त पेट बथे लागे। ओहि बतियन में से एहबे एगो बहुते मजदार बाति इयाद आ रहल बिया। 

चैत-बइसाख के महीना रहे। पुकारी बाबा के खरिहानी में हमार गहूँ दवाँत रहे। मोटकी आरी प जगजीतन चा कपार प तेलहन के एगो छोटे चुनमुनिआ बोझा लेले मतवाला हाथी अस झूमत चलल चल आवत रहन। जब भीरी आ गइले त अपना मुंड़ी के बोझा पइनी के किनारावा वाला सोनरिया अमवा के नीचवा ध के बाबूजी से कहले “का हो माह्टर का हाल चाल बड़वs? सब मजे में? आंय? बोलत काहे नइखs रे मरदे, मुँहवाँ में बकार नखव का?” 

“बढ़िएं बा भाई, आपन सुनावs,” बाबूजी बोलनीं। 

“ आरे! हमरो एक-एक दिन कटीए रहल बा, आ कटत का बा, महराज, घसेटा रहल बा, जानs जे। दुःख दुखे बा सुख सपने बा, बुझलs राजा जानी।” अतना बोल के उ दाँत चिहार देले। 

बाबुओजी गजब के चवनिया मुस्कान मरनीं। दँवरी हाँकल छोड़ के पएना हमरा के धरा देनीं आ अपने जगजीतन चा के भीरी जा के बइठ गइनीं। लागल लोग दूनों इयार गपियावे। कबो हँसे लोग, कबो एक दोसरका के धसोरे लोग। एक दोसरका के कान में कबो फुसफुसाय लोग। कबो कवनो धनेसरी आ पएली के बारे में अतना गते-गते कुछ कहे सुने लोग जे हमरा सुनइबे ना करें। 

जब जगजीतन चा चल गइले त हम बाबूजी से पूछनी, “इ राउर लंगोटिया इयार हवे का बाउजी ?” 

“हँअँs लंगोटिये समझs,” बाबूजी कहनीं 

अतना कहि के उहां के हमरा हाँथ से पएना ले लेनीं आ धवरा के पोंछ अँइठ के टिटकारी मरनीं, जा जा, बढ़s बढ़s, जा उड़ के। हमहुँ उनका साथे साथे गोल-गोल घूमे लगनी त कहले कि बउवा! जग्जीतन के बारे में तहरा के एगो खिसा बताईं का? 

त हम चट से कहनी कि हं हं बताईं बताईं 

बाउजी मुसकइनीं आ लगनीं कहे, "जानs जे बात सन ४८-४९ के होई। देस नया-नया आजाद भइल रहे। संउसे गाँव बहुते खुश रहे। ओघरी अपना गाँव में लोगन के पहलवानी करे के बड़ा सवख चढ़ल रहे। जेकरे के देखs उहे लंगोट बान्हि के अखाड़ा में धूरि लगावत रहे।” 

फेर जोड़नीं “ ए बाबू ! जनिह जे एक दिन के बात ह कि भोरे-भोरे उठि के मर-मैदान होखे खातिर हम नहरिया के किनरवा वाला हरबंस रा के बगइचवा देने गइनी। ओही बगइचवा में बजरंगबली के चबुतरवा भिरी एगो बड़ी पुरान अखाड़ा रहे। ओही आखाड़वा में इहे जगजीतन लाल लंगोट बान्हि के धूरि मलत रहन। हमरा अस छोट- मोट लइका अखाड़ावा के किनरवा प बइठ के इनकर धूरि मलल देखत रहलन स। हमहुँ ओही भीड़ में सामिल हो गइनी आ उनकर जलवा देखे लगनी।” 

बाउजी एक दू मिनट खाती रुकनीं आ पेठियार ठीक करे लगनीं। एक दू अंकवार गहूं के डाँठ मेहियें नधाइल गोला बएला के खुरिया के नीचवा डाल के आ ओकरा के संबोधित क के कहनीं “ हंह, एघरी तूँ बड़ा आराम करतारs, रहs, काल्ह तहरा के पेठीये नाधतानी तब तहरा बुझाई। दिन भर रेहों रेहों कइले रह्तारे ई। इनका देंह में पानिये नइखे तनिको। आसाढ़ में उहे हाल आ जेठ में उहे हाल, थउसना कहीं का।” 

“हँअँs त बउआ कहत रहीं कि हमहुँ ओही भीड़ में सामिल हो गइनी आ जगजीतन के जलवा देखे लगनी। एही बीच में सिपुजन बाबा हाँथ में छव फीट के लउरि लेले केनहूँ से आ गइले आ उहो जगजीतन के जलवा देखे लगले। लइकाईं में जगजीतन तनि मनसहकु रहन। इनकर आपन जोम थम्हाते ना रहे। उनका अपना प अतना गरुर रहे कि पूछs मत I उ हमरा से उमिर में दू-चार-पान साल बड़ रहन। अखाड़ा के किनारा प बइठल लइकन के ललकार के जगजीतन कहले कि आवs लोग केहू लड़ी हमरा संगे? बा कवनों भुइँहार के लइका के ... में दम ? केहू के माई दूध पिअवले होखे त आवो आ हांथ मिला के देख लेवो।” 

“ हमरा अइसन लागल कि सिपुजन बाबा के ई बात ठीक ना लागल। उनुका चेहरा के रंग बदलल आ उ तिलमिला गइले बाकिर आपाना करोध के दबा के बड़ा सालीनता से कहले कि का हो कवनों जाना लड़बs का जगजीतन से ? हम कहनी कि बाबा! हम लड़ीं का ? बाबा कहले – देख।” 

बाउजी आगे कहनीं, “ जानs कि हम बिहिटी पेन्हले रहीं। ओघरी उहे पेन्हे के परचलन रहे। आव देखनी ना ताव आ उतर गइनी तड़ से अखाड़ा में। हम त जानते रहीं कि हम त जीतब ना उनका से। काहे कि उ त देखहीं में बड़ी बरिआर लउकत रहन। बाकिर लइका के मन होला बादशाह I उतर गइनी त उतर गइनी। पटका जाइब त का हो जाई I इहे नू कि लइका हो-हो करिह सन।” 


“पेसेवर पहलवान जइसन हाँथ में धूरि लेके हम जगजीतन देने हाँथ बढ़वनी I मुस्काते मुस्काते उहो हमरा देने हाँथ बढ़वले। उनका हाव-भाव से इ बुझाइल कि कहत होखस कि का मरदे तें नाहीं तुहूँ हाथी से हथरस करे आइल बाड़।” 


“जसही हमरा हाँथ से उनुका हाँथ छुआईल ए बाबू! कि हम उनका दूनों गोड़ के बीच में घूसनी आ सोकना बएला जइसे उबीछेला, ओसहीं ध के उबिछी देनी। एई! जगजीतन फेंकइले होने अखाड़ा के किनारा। हम खट्ट से धूरि झारि के टायट। सिपुजन बाबा सब खेला चुपचाप देखत रहन आ मुसकियात रहन।” 


“जानs ए बबुआ कि जगजीतन के देंहि में लागल आग। उ अइसन थोरहीं सोचले रहन कि एको छन ना लागि आ उनुकर घमंड धूर-धूर हो जाई। अब उ हमरा के दोबारा पकड़ि लेले आ जबरजस्ती करे लगले कि अबकी बे आवs। तनी झूठा परि गइल हा, तs तूं ओकर फयदा उठा लेलs हs। हम कहनी कि अब ना लड़ब, ए भाई। अब त तूं पटका गइलs। अब का हो? उ फरफेनी फोरे लगले आ कहे लगले कि दोबारा लड़हीं के परी। उ खींच के हमरा के अखाड़ा के बीच में ले गइले ए बाबू। सिपुजन बबवा ई सभ चुपचाप देखत रहे। हमरो ताव आ गइल, कहनी कि आव-आव तहरा .. .. आ मरनी अपना जांघी प थाप। 

“ दोसरका बे उ जसहीं अपना मोट थुलथुल जांघ प बड़का पहलवान अस थाप मरले कि हम फिर से उनका गोड़ के बीच में घूसनी आ फेर फेंकनी उबिछी के होने अखाड़ा के किनारा। ए गइले जगजीतन फेर होने तेल्हंडा में कि। अबकी बे त पागले हो गइले जगजीतन। क्रोध में अगिया बैताल बनि के जगजीतन फेर से हमरा के खींचे लगले अखड़ा में। मनवां में कहनी कि बुझाता कि जाने लेके कादो छोड़ी, हतेआर। अब त हम बेलकुले ना लड़ब। बाबा से कहनी कि देखतारs बाबा एकर बदमासी।" 
“अब सिपुजन बबवा के भइल दिमाग खराब। उ खिसिआ गइले आ दसन गारी देले जगजीतन के आ उठवले छफिटिया लाठी। हा हा हा हा, जगजीतन लेले लमी, लंगटे उघारे, लाल लंगोट पेन्हले। तब जानs जे कसहूं कसहूं हमार जान बाँचल, ना त मुआइए घालित कादो। बाबा हमार पीठ ठोकले आ पूछले कि केकर लइका हव तूं? त हम कहनी कि रामसुंदर रा के। त कहले कि जा खुश रहs। ओकरा बड़ी चढ़ल रहे, सब उतर गइल।” 
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लेखक परिचय:-
प्रोफेसर (इंग्लिश) शासकीय पी.जी. महाविद्यालय सतना, मध्यप्रदेश
बी-37, सिटी होम्स कालोनी, जवाहरनगर सतना, म.प्र.,
मो नं: 9425887079
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मैना: वर्ष - 7 अंक - 118-119 (अप्रैल - सितम्बर 2020)

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