कैकयी के मनसा - विद्या शंकर विद्यार्थी

बात से खाली पुआ पाके ना का बा राउर इच्छा 
दे दीं स्वामी भरत के गद्दी करब ना हम परतिछा।

इहो लइका ह हईं हम माई बड़के पर मत ढरीं
दिहले बानी पहिले वचन तवने तऽ पुराईं करीं।

बा ननिहाल त का भइल सुनी त धावल आ जाई
राउर फैसला सुनी त ऊ सुन के मन में अघा जाई।

काहे रउरा कठेया बा लागल पुराइब ना का अब 
राजा हईं त कुछ कहीं, वचन पुराइब ना का अब।

आगे पीछे करब रउरा जदि हम ओह दिन जनतीं
नारी के बस फुसुलावत बानीं इहे हम पक्का मनतीं।

हमरा रउरा बीच बात बा अबहीं केहू कुछ ना जानी
लिहीं फैसला लिहीं नाथ हमहूँ त हईं राउर राजरानी।

बा परन अब चाहे जइसे भरत के होई राजतिलक
राम के चाहे वनवास होई भरत के होई राजतिलक।

तपसी के ऊ भेष में रहिहें भरत के होई राजतिलक 
राजतिलक बस राजतिलक भरत के होई राजतिलक।
कैकयी माई के मनसा बा भरत के होई राजतिलक।
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लेखक परिचयः
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास ( सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912

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