बर्तमान के सींचेला, आदमी सामान्य
भबिस्य के बोवेला आदमी गणमान्य।
पाकल बाल जइसे फसलिया से कहे
कब आई खेतिहर, ओकर रहिया जोहे।
पाकल फसल देख खेतिहर हरषे
महीनो इंतजार बाद ई नेह बरिसे।
अनाज त खुश बा उ भूख मिटाई
हर अनाज के का इ सुख भेटाई?
नया फसल से ख़ुशी क दियना जरी
माई के चश्मा लागी, साफ लउकी हरो घरी।
सब केहू मिल के करी अनाज के छटाई
खाये के कुछ,बेचे के कुछ, कुछ बिया धराई।
बिया त खुश बा, उ नया फसल उगाई
उगी फसल त अनाज आई भूख मेटाई।
बिया उतान बा, खाये वाला अनाज से बानी महान
बोवे वाला तोहके, बाँचल खाके जाने जहान।
बर्तमान बाँची अनाज के खा के
भबिस्य बाँची बिया खेत जा के।
अईसही जिनगी क फलसफा ये भाई
के बनी अनाज आ के बियावाला रोल निभाई।
शुद्ध, स्वस्थ, बिया ही अंकुर गहि
उचित भण्डारण ही राखी बिया सही।
सब बन जाई बिया, त बर्तमान ओराई
सब बन जाई अनाज त भबिस्य जराई।
अनाज वाला पात्र गृहस्त निभावे
बिया क रोल, साधू संत के भावे।
अनाज बिया छांटे वाला हुनर चाही
कहे ले "तारक" तबे निक जिनगी भेटाई।
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नाम: तारकेश्वर राय 'तारक'
सम्प्रति: उप सम्पादक - सिरिजन (भोजपुरी) तिमाही ई-पत्रिका
गुरुग्राम: हरियाणा
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