सबुज बाग - दिनेश पाण्डेय

बस अबकी बेरी अजमाईं।
झाड़ू फेरबि गावाँ-गाईं।
झकझक होखी खोरी-कूचा।
अब ना रहिहें गुब्ची-गुब्चा।
जहवाँ चाहीं टाट बिछाईं।
बोलीं केकर किरिया खाईं।

अबहीं बपसी नीके बानीं।
अपने खालें सानी-पानी।
खाली महतारी लपटइली।
गहना-गुरिया कतो लुकइली।
एही ले थोरिक हिचिकाईं।
कइसे उनुकर किरिया खाईं।

मउगी त बस मउगी बीया।
तेही लेखा बाछी धीया।
दीहीं गारी चाँपीं घेंटी।
कतहूँ ना ऊ बात उघेंटी।
उनुके माथे हाथ रखाईं।

अइले गइले प्रेम बढेला।
मन में बइठल गाद कढ़ेला। 
हितई अब परवान चढ़ाईं।
बैरी लो' के लागे झाईं।
हमहूँ चाभीं रउओ पाईं ।

गली- गली में बनिहें मोरी।
धुरखेली टंटा भा होरी,
केहू ना सकिहें चहबोरी।
कहवाँ जइहनि देह धँसोरी।
मुँह अलगवले सरपट धाईं।

खंदक सभ संडक बनि जइहें।
दुअरे ले फटफटिया अइहें।
फानि के रउओ पीछे बइठबि।
तकिहें लोगे खूबे अँइठबि।
बैरिन के मुँह लागी चाँईं।
हे लीं तबले पान चबाईं।
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लेखक परिचय:-
नाम - दिनेश पाण्डेय
जन्म तिथि - १५.१०.१९६२
शिक्षा - स्नातकोत्तर
संप्रति - बिहार सचिवालय सेवा
पता - आ. सं. १००/४००, रोड नं. २, राजवंशीनगर, पटना, ८०००२३

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