का हो बबूनी - अरुण शीतांश

अब घर के चबेनी के फाँकी?
के जाई गोबर ठोके?
केकर घर से आगी आई?
के माई के पउंवा दबाई?
के सोहर गाई ?
के झूमर पारी?
के अलत्ता से पाँव रंगी?
के गवना के बोलहटा दीही?
के भाई के चरण धोई?


बाबूजी के नाता छूटल जाता
गारी कोई ना गाई
का हो बबूनी काहे बाड़ू दुबराईल?
अब गेहुँ ना 
आटा पीसाई!
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लेखक परिचय:
जन्म: ०२.११.'७२
शिक्षा: एम. ए. ( भूगोल औरी हिन्दी में) एम लिब सांईस पी एच डी .एल एल. बी. 
प्रकाशन: दूगो कविता संग्रह, एगो आलोचना क किताब
संपादन: देशज नाँव क हिन्दी पत्रिका क संपादन, पंचदीप किताब क संपादन
कईगो भाखन में कबितन के अनुबाद
संप्रति: नौकरी
संपर्क: मणि भवन, संकट मोचन नगर, आरा ८०२३०१

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