चनरमी - डॉ. आशारानी लाल

का जाने आज का सोच के चनरमी आइल, कि काम करे चउका में ना जाके बहरे हमरा लगहीं आके बइठ गइल। अइसन त पहिलहू ऊ करत रहे, बाकी ओह घड़ी जब कि ओके हमरा से कुछु माँगे-चहे के रहते रहे। चाहे अपन दुखड़ा बतियावे के चाह होत रहे। 

आज ओकरा चेहरा पर अइसन कवनो भाव लउकते ना कइल रहे। ऊ त हँसत बिहँसत रहे। ओकर मुँहवादेख के हमहीं ओसे अबे बतियवल चहलीं कि ऊ बोलल - ए माईजी। ओह दिने जहिया रउरालगे, रउरा बेटा के फोन आइल रहे कि ऊ लोग काल्‍हे दुपहरिया ले, यानी खाये के बेराले इहाँ-चहुँप जाई, तब रउरा केतना खुश मड गइल रहीं। लागत रहे कि राउर गोड़वा भूँइया परते ना रहे। झट से एने, झट से ओने लगनी घउरे। एने के चीज उठा के ओने धरत रहीं, तड कबो बइठका सइहारत रहीं, तड कबो चउका चुहानीमें का बा आ का नइखे एही सरजाम के देखते रहीं, लागत रहे कि रउरा बेचैनी धर ले-लेबा। सोचतो रहीं कि ओह लोग खातिर काल्‍ह का-का खमेका में बनावल जाई। रउरा बाबू के हई नीक लागेला त पतोहा के हई। हमरा से रउवे कहलीं कि अब तोके हम दू दिन ले, तोरा घरे ना जाए देइब। लइकन के अइला पर काम-धंधा बहुते बढ़ जाई। रतियोके काल्‍ह एहिजा तूँ रूक जइहे। रउवा हमरा साथे-साथे पहिले पूरा घर के सफाई करवलीं आ कहलीं कि‍ हमरा पतोह के गंदगी तनिकों पसंद ना ह । 

ए माईजी हम त राउर फूर्ती देख के ओह दिने दंग भ गइल रहीं। रउवे न चना-बचुआ आ सरसो के साग मंगा के आ बना के एक दिन पहिलहीं फ्रिज में धर देले रहीं। ओके अपने खइनी ना, आ इहे कहनी कि काल्‍ह जब ओह में लहसुन-मरीचा आ अदरख के साथे सरसो के तेल में कड़ाहीमें धके गरमाइब तब ओहू लोग के खियाइब आ अपनहू खाइब। इहो रउना बतवलीं कि हमरा पतोहके साग बहुते पसंद आवेला। 

अपना बेटा खातिर सबेरहीं दूध मंगा के आ खीर बनाके रउवा धर दीहलीं आ ई कहिके कि हमरा पोती के रसगुल्‍ला बहुते अच्‍छा लागेला तब बंद डब्‍बा के रसगुल्‍ला आ थोड़ा लड्डू जवन राउर पोता खालन रउवा मंगा के धर लेले रहीं। 

हमहूँ रउवा साथे-साथे ऊ कुल काम कइलीं जवन रउरा कहलीं बाकी रउरा के देख के हम अचरज करत रहीं कि जवन माँजी ई कहिके कि अब जाँगर थाक गइलबा, आज मसाला-आटा मत कर, हम खिंचडिए बना के खा लेइब, कइसे अब ए घड़ी एतना धंधा में लागल बाड़ी आ थकेता नइखी। 

ए चनरमी! तूँ बोल न । एतना गलतरानी काहे छेड़ले बाड़े। तोरा कहे के का। 

ना डॉ, हम इहे कहतानी माईजी कि ओह दिने राउर तइय्यारी कइल देख के तहम इहे सोचत रहीं कि एतना ताकत रउवा देंह में कहाँ से आ कइसे भेंटा गइल बा। ऊ लोग त बस एकही दिन रात खातिर आवे के रहे, काहे कि रउवे बतवले रहीं कि बबुआ-बबुनी के स्‍कूल खुलल बा एहिसे लोग रूकी ना। 

रउवा ओह लोगिन खातिर एतना कइलीं आ जब जाए लागल लोग तब राउर मुँहवे नाहीं, सगरो देंहिया मुरझा, गइल रहे, तबे न रउवा उन्‍हन लोगिन के गाड़ी में बइठते धम्‍म से आँखी में आँसू भर के ओहिजा दुअरवे के कुर्सिया पर जब बइठलीं तब बड़ी देर ले उहें बइठल रह गइलीं, आ बड़ा मुस्किल से चायो पीए के 'हँ' कह पवलीं। 

माईजी रउवा से ओह दिने त हम कुछ ना कह पवलीं, बाकी आज कुछु पुछेके हमार मन करता। हमरा बात से रउवा खिसियाइब त ना न। हमके कहत के डर लागत। हम कह नइखीं पावत। 

कहु न डरे। एतना बान्‍ह काहे बान्‍हतारे। कवन अइसन बात बा। ना ए माईजी हमरा डर लागता। रउरा लोग बड़ आदमी बानी। कवनोबाउर बात मुँह से निकल जाई त ठीक ना कहाई। 

अरे तोरा जवन पुछे के बा तवन कहत काहे नइखे। 

ए माईजी कहे के नइखे, खाली पुछे के बा। हम इहे पुछतानी कि राउर पतोह रउरा से बोले बतियावेलीना का? 

तूँ त बड़ा बदमास बाड़े रे। काहे अइसे कहतारे। 

ए माईजी जानतानीहम दू दिन-एक रात इहाँ रहीं न, तब इहे देखलीं। 

रउरा त एतना उमंग से अपना बेटा-पतोह-पोता-पोती के मन के बहुते खियाल रखले रहीं। उन्‍हन लोगिन के खुशी देबे में राउर बुढ़ापो भाग गइल रहे। राउर पोता-पोती आ बेटा सब त बड़ा खुश लउकत रहे, बाकी राउर-पतोह...। 

अरे! तू जानते नइखे न कि ऊ बहुते बड़ अफसर बाड़ी। ऊ हरदम अपना आफिस के आ काम धंधा के कुल बात सोचत रहेली। फेनू उनका अपना बाल-बच्‍चा के काम से तनिको फुरसते ना मेंटाला, देखेले ना कि मोबाइल पर केतना फोने पर फोन आवत रहेला। ऊ का-का सम्‍हारँस। बेचारी अपना काम में हरदम नघाइल रहेली। केहू से बोले बतियावे के उनका फुरसते कहाँ रहेला। 

ठीके कहतानी - बाकी जानतानी कि ना, ऊ हमरा से रउरा बारे में चउकवे में खड़ा होके बहुत बात पुछत रही। रउवा का-का खाइलाँ, का नाश्‍ता करिंलाँ, कहाँ घुमे जाइलाँ, रउरा लगे के आवेला आ अइसने बहुते बात हमसे बेर-बेर पुछली आ जनली। देखलीं ना कि रउवा के चाय पीये खातिर हमरे के भेंज के आ कहिके रउवा के बोलअवली। 

तडका झइल रे। चायवा तड हमनी के साथ ही बइठ के न पियलिंजा। हँडठीक बा कि चाय रउवा साथ हीं पियलीं। बाकी चाय यि तो घड़ी खाली राउर बेटे रउवा से कुछु-कुछ पुछत आ बतियावत रहत। ऊ त एक्‍कों बेरी न बोलली न अपना हाथे चयवे उठा के रउवा के देली। 

तू मनबे कि ना। अरे उनका कुछु पुछे के ना होई। एकही दिन त लोग रूकल रहे आ तूँ ओह लोग के बारे में एतना पढ़ाई पढ़ लिहले कि हम का बताई। 

हमरा त अपना पोता-पोती से बतियवलहीं से फुर्सत ना रहे, कि दुसरा केहू से बोलीं आ बतियाईं। 

ठीक बा हम जवन देखलीं उहे कहतानी, रउवा खिसियाई मत। जानतानी आज दू दिन से हम इहे सोचत रहीं कि राउर पतोह रउवा से काहे बोलली ना। ना रहल गइल ह त अब पूछ दीहलीं हँ। 

ठीक बा, पूछ ले-लेन, आ जनियो गइले। जो अब अपन काम करा। ई कुल ना बतियावल जाला। 

ए माईजी हमनी के छोट आ गरीब घर में रहिलाँजाँ, बाकी कबो अइसन देखले ना रहीं कि एकही जगह आ एक्‍के साथे रहियो के केहू-मेहू से न बोले, न बतियावे- आ ई बात दूसर केहूजानियो ना पावेला। 

अच्‍छा अब ई बताई माइजी कि ऊ रउवा से बोलली ना तबो उनका चल गइला से रउवा एतना उदसलीं काहे। राउर दु:ख सुख त ऊ पुछबे ना कइली। ओ लोगिन के जाते रउवा आँखी में आँसू भरके उहें दुअरवे के कुर्सिया पर थउस के बइठ गइलीं। का मोह एहिके कहल जाला। 

ए चनरमी तूँ काम करे चउकवा में जइबे कि ना। ढेर बतकही ना करे के। लागता कि तूँ हमरा मुँह लाग गइल बाड़े। तोरे नियर मेहरारू के न लोग मुँहजोर कहेला। तू बड़ा तिखार तारे रे। 

खिसियाई मत ए माइजी। जानतानी एक बेरी हमार माई हमके हमरा बेंजाय कइला पर बड़ी पीटले रहे आ कहत रहे कि- बड़ घर में त कइसेना बात पच जाला, बाकी हमनी घरे ना। आज हमरा ई बुझा गइल कि के तरे कवनो बात पचावल जाला। 

लागता कि तू अब मनबे ना। जो भाग इहाँ से। तू बड़ा निखुराह आजिद्दी बाड़े रे।
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लेखक परिचय:-
जन्म: 16 अगस्त 1940, सँवरूपुर, बलिया (उत्तर प्रदेश)
मो.: 09968438886 
भाषा: भोजपुरी, हिंदी
विधा: कहानी
मुख्य कृतियाँ: ‘ए’ बचवा फूल फर, हमहूँ माई घर गइनी, दिठौनाँ, माटी के भाग, सितली, लौट चलें, देवकुरी, जै कन्‍हैया लाल की
सम्मान: साहित्‍यकार सम्‍मान पुरस्‍कार, हरिशंकर वर्मा पुरस्‍कार, उत्‍तर साहित्‍य श्री सम्‍मान, भोजपुरी गौरव सम्‍मान, चित्रलेखा पुरस्‍कार, डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन साहित्‍य रत्‍न पुरस्‍कार

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