राम जियावन दास 'बावला' के दू गो कविता

देशवा के देशवा क धुन कब होई

दोबिधा में मनवा हमार होइ जाला
कले-कले दिनवाँ पहार होइ जाला।

ढेर परिवार क अपार लागै रोटिया
देहिया ढुकावै बदे, फटही लँगोटिया।
लोग बतावैला, सुधार होइ जाला।
कले-कले दिनवाँ पहार होइ जाला।

निरगुन बतिया, सगुन कब होई?
देशवा के, देशवा क धुन कब होई
दूर जइसे नदिया, किनार होइ जाला।
कले-कले दिनवाँ पहार होइ जाला।

बिजुरी जरत कारी रतिया न जाले
बेचलो इजतिया, बिपतिया न जाले
कइसे मानी, देशवा, उधार होइ जाला
कले-कले दिनवाँ पहार होइ जाला।

पनिया क भँवरा, थिराई कि दौं नाहीं
‘बावला’ कबहुँ सुख पाई कि दौं नाही
जस तिछुअरवा कटार होइ जाला।
दोबिधा में मनवा हमार होइ जाला
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सूखा

कइसन बा राउर विधान हो विधाता
धक्-धक् करेला परान
पनियां सपनवा मोहाल बा पतउवा
दागि-दागि पेट रही जाले बचउवा
छुप गईले केतनन क चान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।

डकरेले गोरुवा बताव कहाँ जाई
जरत सरेहिया तिरीं कहाँ जाई
होई जाई देसवा मसान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।

अंसुवा क सिंचल बेइल कुम्हिलाइल
केकरे बेसहले विपति अगराइल;
झंखत बा खेत-खलिहान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।

अगिया लगाय के कवन कल पवले
यही महँगाई में चक्कर चलवले
"बावला" भईल इन्सान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।
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लेखक परिचय:-
नाम: राम जियावन दास 'बावला'
जनम: 1 जून 1922, भीखमपुर, चकिया
चँदौली, उत्तर प्रदेश
मरन: 1 मई 2012
रचना: गीतलोक, भोजपुरी रामायण (अप्रकासित)

1 टिप्पणी:

  1. अद्भुत कविताई थी आपकी।नमन करता हूँ ऐसी विभूति को।गर्व पूर्वक कह सकता हूँ ,मैंने बावला जी को देखा था।

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