हरिराम द्विवेदी के दू गो कविता

चान माँगै ललना

चान माँगै ललना तरइया माँगै ललना
रोइ रोइ गोलकी जोन्‍हइया माँगै ललना।

केहू बतावै कहवाँ जाईं
सरग क तरई कइसे पाईं
कवन खेलौना दे बबुआ के
कउनी जोगिम से चुपवाईं
लोट पोट करै अँगनइया माँगै ललना
चान माँगे ललना।

ताल तलइया नरई जामे
बछरू गइया घामे-घामें
कहाँ भेटाई कइसे आई
तरई बाटै केतनी लामे
सूझै नाही कउनो उपइया माँगै ललना
चान माँगै ललना।

रोज सबेरे जब पह फाटै
चलै अजोर अन्‍हरिया छाँटै
बिहने बिहने जोति किरन कै
सच्‍चो केतनी बढ़िया बाटै
भोरे-भोरे सोनचिरइया माँगै ललना
चान माँगै ललना।
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नाचे नि‍रखि-निरखि दरपनवाँ में

पवना बेनियाँ डोलावे, बदरा रस बरसावै
गावै झूम झूम मनवाँ सिवनवाँ में
नाचै निरखि-निरखि दरपरनवाँ में।

भिनसहरे जँतसार गीत कै बोल करेज करोवै
जइसे केहू पइठ के भित्तर लगै हियरवा टोवै
माटी सगुन जगावै, भरि नेह दुलरावै
पावे सुखवा जोगवले परनवाँ में
नाचे निरखि-निरखि दरपनवाँ में।

बिहने भुइयाँ उतरि किरिनियाँ अँचरा लगै पसारै
तनै उमिर कै ताना-बाना जिनगानी पुचकारै
सगरो पसरै अँजोरिया, कत्तों रहै न अन्‍हरिया
रेंगै लागैला असरवा अँगनवाँ में
नाचे निरखि-निरखि दरपनवाँ में।

मचियाँ बइठे आजी लेके छोढ़ी चलै कमोरी
देखतै बने दुलार धरै जब लैनू काढ़ि गदोरी
जियआ अस कै लोभाला, किछु कहलो न जाला
सुख सरगे क उतरै भवनवाँ में
नाचे निरखि-निरखि दरपनवाँ में।

गहबर पियरी पहिर खेत में खड़ी फसिल गदराइल
सबही के मन टटकी टटकी साध लगै अँखुआइल
कइसन सपना सजोवैं, केतनी मनियाँ पिरोवैं
झाँकि-झाँकि रहैं अपने अयनवाँ में
नाचे निरखि-निरखि दरपनवाँ में।

पाखे के खोता में बइठ गावै सोन चिरइया
घुटुरुन ढुरकत देखिबकइयाँ भरि जाले अँगनइया
संझा कहनी कढ़ावै, रतिया लोरी सुनावै
ममता निदिया बलावै नयनवाँ में
नाचे निरखि-निरखि दरपनवाँ में।
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लेखक परिचय:-
नाम: हरिराम द्विवेदी
जन्म: 12 मार्च 1936
जन्म स्थान: शेरवा, मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: अँगनइया, पातरि पीर, जीवनदायिनी गंगा,
साई भजनावली, पानी कहे कहानी, पहचान, नारी, रमता जोगी,
बैन फकीर, हाशिये का दर्द, नदियो गइल दुबराय
सम्मान: साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान,
राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य भूषण (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य सारस्वत सम्मान (हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग) तथा अन्य

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