तलफत भुभुरी सोंच के - देवेन्द्र कुमार राय

सोंचे में सकुचातानी
कहे में भीतरे डेराइला,
रोज अंजुरी में धुंध सहोरले
दिल के कठवत में नेहाइला।

बेवहार के बागि नोचाता
फीकीर केहुके हइए नइखे,
जब कहीं करम के पटवन कर
त हम केकरो ना सोहाइला।

सभे बवण्डर बनिके चले
रेगिस्तानी राग अलापता,
कपट के करवन लोटकी से
सभके के नेहवाइला।

कसमकस से कलपत काया
करीखा के बनल संघाती,
सोंच के तलफत भुभुरी में
डेगे डेग नहाइला।

जेने देखीं झूठ के ढेरी
ना बाजे कवनो रणभेरी,
आंखि अछइत आन्हर भइनी
कुकुर जस चिचिआइला।

कइसन दइब के ज्ञानी बस्तर
झूठ फरेब भइल बा सास्तर,
सांच के चोला चंचरी रोवे
हम सुखले रोज नहाइला।

कतना ले सबद के साज सजाईं
केकरा ले आपन दरद बताईं,
अंखिया के फफकत फोरा के
राय कसहूं राज छिपाइला।
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लेखक परिचयः
नाम: देवेन्द्र कुमार राय
जमुआँव, पीरो, भोजपुर, बिहार

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