एक जिला के आदमी - विद्या शंकर विद्यार्थी

एक त गरमी के दिन आ दोसरे में गाड़ी में बड़ा सकसा सकसी रहे। केहू उतरे त केहू के धकिया के चढ़े । आ केहू केहू चढ़बो करे त केहू के बरियारी धकिआइए के। फाँफ नाम के चीझे ना रहे । कतना मेहरारू लइका के हूल आवे लागे, आ जब बरदास ना होखे त बोमी कर द सन। बाप रे बाप हई हाल में केहू का कहीं जाई।

तेही बीच एगो आदमी हुले लागल आ कहे लागल, रउरा सभे नियन हमरो जाए के बा जी, तनी जगह दिहीं जा एक जिला के आदमी हईं हम।

भासा बोले के वाक्-कला से आदमी प्रभावित हो जाला। आ जगह दे देला। ओकरो के लोग कज होके जगह दे दिहलस।

सभे एक नियन ना होखे। अपने दब के केहू चढ़ा लिहल। हमरो लागल। चल कम से कम ठाड़ त रह लिहें। आ सभे जइसे सकसा सकसी में जाता इहो चल चलिहें। अगिला ईसटेशन पर कुछ खलहल भइल ।सभे के तनी राहत बुझाइल।

बाकि लइका के जात हमार पोता झेंझ करे लागल, "ना हम चश्मा लेब हुनकर।" हम समुझवलीं कि दोसरा के चश्मा ना लिहल जाला। "ऊ ना दिहें।"

लइका जात अब मौका जोहे लागल आ पलखत पवते लपक लिहलस। अब का रहे ऊ आदमी मुँह फेरे लागल। ना ऊ सिवान के रहे ना आरा के, ना पटना के ना सारन के, ना कैमूर के ना रोहतास के ना बलिया के ना बनारस, ना मिर्जापुर के ना गाजियाबाद के । साँचो ऊ एक जिला के आदमी रहे। ओकरा भिरी भासा आ बोली के वाक्-कला रहे।
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लेखक परिचयः
नाम: विद्या शंकर विद्यार्थी
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास (सासाराम )
बिहार - 221115
मो. न.: 7488674912

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