रुपिया पइसा - दीपक तिवारी

रुपिया पइसा धन दौलत नइखे कवनो काम के
बा जले जवानी कऽ लऽ हाली से चारो धाम के।

आई बूढ़वती हाथवाँ कापी गोंडवाँ दिही जवाब
अईठ के चलल सगरो छूटी बनल तोहार नवाब।

कुछ काम करऽ अइसन लोग लेबे तोहरा नाम के
बा जले जवानी कऽ लऽ हाली से चारो धाम के।

कतनो कमा के गाज देबऽ केहू तोहरा से खुँश ना रहि
बाद में बुझबऽ मरम तब कहबऽ सभ गइल बही।

अबो से मूरख समझऽ भजलऽ हो श्रीराम के
बा जले जवानी कऽ लऽ हाली से चारो धाम के।

मन के बात केहू ना जाने का मगज भेजा में चलता
अपने छत्र छाँया में जाने कइसन सापवाँ पलता।

अस्थिराहें सोचिहँ दृश्य नजर आई श्मशान के
बा जले जवानी कऽ लऽ हाली से चारो धाम के।

नइखे भरोशा केहू पऽ चाहें केहू आपन हो खास
दीपक के बात मानऽ प्रभु पऽ राखऽ तू विश्वास।

कलंक माथा पऽ लेके जइबऽ का तू इल्जाम के
बा जले जवानी कऽ लऽ हाली से चारो धाम के।
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लेखक परिचय:-
नाम: दीपक तिवारी
पता: श्रीकरपुर, सिवान।

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