साँझे के पहरिया बीतल हाली - विद्या शंकर विद्यार्थी

साँझे के पहरिया बीतल हाली जी,
भोरवा भइल बाटे देर,
उदयीं दीनानाथ उदयीं हाली उदयीं जी,
कहँवा बानी अति बेर, साँझे...।

सुपवा में लेले बानी फल नरियरवा
पनिया में बानी नाथ काँपता जियरवा
गलती त भइल नाहीं जेके कारन जी,
भइल बाटे इहो फेर, साँझे...।

अँखिया निहारता पुरूबवा के दिशवा
ललिया ना लउके पुरूबवा के हिस्सवा
बतिया के चिरईं नू खोंतवा में जी,
करत बाड़ी उटकेर, साँझे...।

आसरा छोर पर जनाई जब बिहनवा
तबे मानब पुरा भइल मोर इम्तिहनवा
अरघ दिहब तबे जानब भगिया में जी,
भेंटल हमरा सबेर, साँझे..।

विद्या के बिनती जिनगी के बा सपनवा
छठी माई जोरे नाथ दिहीं ना दरसनवा
अरघ लिहीं हाली देव बरतिया के जी,
भरीं कोंखिया के हेर ...।
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लेखक परिचयः
नाम: विद्या शंकर विद्यार्थी
C/o डॉ नंद किशोर तिवारी
निराला साहित्य मंदिर बिजली शहीद
सासाराम जिला रोहतास (सासाराम )
बिहार - 221115
मो 0 न 0 7488674912

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