बोहाग बिहू - दिलीप कुमार पाण्डेय

बोहाग बिहू भा रंगाली बिहू असम आ असमिया के सबसे स्रेष्ठ उत्सव हऽ। ई शक संवत का अनुसार चइत में संक्रांति से सुरू होखेला आ बइसाख का छव तारीख़ ले चलेला। (बता दीहीं जे सक संवत में अंग्रेजी महिना अस कलेंडर बा।) असम में तीन गो बिहू मनावल जाला ;बइसाख में बोहाग बिहू ,कातिक में काति बिहू आ माघ में माघ बिहू।

बोहाग बिहू के सुरूआत होला उरूका से। उरूका का दिने जनमानस हाट बजार करेला। ओकरा बिहान भइला होला गोरू बिहू। गोरू बिहू में माल-जाल के नहवा सींग में तेल लगा पगाहा बदलल जाला। ओह दिन एगो गीत गवाला
"लउका खा बैंगन खा साले-साले बढ़ जा।"
"माई छोट बाबू छोट तूं होइहऽ लम्हर मोट।"

"लम्मा लती लम्मा पात माछी मारीं थाक-थाक,"
"माखियती के माछी पात माछी मारीं थाक-थाक " (अनुवादित)


बोहाग बिहू में १०१ प्रकार के साग के जरूरत होला। जवन प्रायः बनौषधि होला। दूसरा दिन से से सुरू हो जाला मानुस बिहू जवन छव बोहाग के समाप्त होला।

बोहाग बिहू के बसंतोत्सवो कहल जाला। एह समय में परकिरति दुल्हिन जस सज-संवर जाला,रंग बिरंग के फूल खिल जाला ओही में कोइल आ पपिहा के मधुर बोली जुवक जुवतीयन के मन आनंद से भर देला। आ जुवक जुवती झुंड बना निकल जाले बिहू गावे। ढोल, पेपा,बांसुरी,गगना आ जेङ टका के आवाज मतवाला क देला असमिया जनमानस के बिसेस कऽके जुवकन के।

बिहू-गीत गा-गा जुवक जुवती प्रेम प्रस्ताव देत रहे। आ एही बोहाग में जुवक जुवती मन पसंद बर चुन बिआह कऽके घर संसार बसावत रहे। निश्छल प्रेम के उदाहरण आजो असमिया समाज में देखे के मिल जाला। लेकिन समय का संगे सब बदलेला। अब बिआह सादी के रूप बदल गइल तबो सेष भारत से अलगे परंपरा असमिया समाज में चल रहल बा। आजो एजा पहिले लइका आला लइकी का घरे लइकी मांगे जाला। ओकरा बाद लइकी आला लइका का घरे जाला, पसन्द हो गइला का बाद अपना परंपरा का अनुसार लोग बिआह क देला। एह समाज में बैदिक रीति आ गैर बैदिक रीति दूनु परंपरा के चलन बा।कुछ लोग बैदिक रीति के मान हवन यज्ञ कऽके बिआह करेला आ कुछ लोग गन्धर्व बियाह करेला।
बिहू का अवसर पर पुरूष धोती कुर्ता आ महिला मूंगा के मेखला चादर पहिरेला। बोहाग बिहू में कपौ फूल महत्व बहुत बा। एकरा बिना फुलइले बिहू होइए नइखे सकत। चइत का समाप्त होखे-होखे होला ताले कपौ फूल फूला जाला। बिहू नृत्य करेवाली जुवतिन के नाचनी कहल जाला। नाचनी लो अपना खोपा में कपौ फूल लगाइएके नाचेला। बिहू में जवन जुवक ढ़ोल बजावेला ओकरा के ढ़ोलिया कहल जाला। एह अवसर पर छोट-छोट लइका जब धोती पहिरेले त् सक्षात भगवान जस लागेलें। जुवक लो कमर में आ माथा पर गमछा तथा कलाई में लाल रूमाल बांधेला। बिहू का दिन असमिया समाज नामघर में बिसेष पूजा-अर्चना कइके नया साल के आदर जनावेला।

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लेखक परिचय:-
नाम - दिलीप कुमार पाण्डेय
बेवसाय: विज्ञान शिक्षक
पता: सैखोवाघाट, तिनसुकिया, असम
मूल निवासी -अगौथर, मढौडा ,सारण।
मो नं: 9707096238

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