करीं धरीं चाहे कतनो मरीं
ना सोंच के जांगर घुसुकता,
दुशासन के शासन में हमार
करेजवा रहि रहि सुसुकता।
सुघर सोंच बिला गइले
समय के अइसन फेरा बा,
झमकि झमकि के झूठ चले
आ जहर भाव के टुसुकता।
लुट खसोट चम चम करे
ईमान के घर भइल आन्हार,
करम के फेंड ठूँठ भइल
कपट काल के मुसुकता।
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ना सोंच के जांगर घुसुकता,
दुशासन के शासन में हमार
करेजवा रहि रहि सुसुकता।
सुघर सोंच बिला गइले
समय के अइसन फेरा बा,
झमकि झमकि के झूठ चले
आ जहर भाव के टुसुकता।
लुट खसोट चम चम करे
ईमान के घर भइल आन्हार,
करम के फेंड ठूँठ भइल
कपट काल के मुसुकता।
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