बुड़बक आ बकलोल
बोलत बिरही बोल
बेगइरत बा निपोरत खीसी
बुझs बबुआ गदह पचीसी॥
एक के बाबू,एक के माई
दूनों बेकल, धाई-धाई
दूनों के बा डिब्बा गोल
केने जइहें खबर नबीसी॥
बुझs बबुआ.....
दस-पाँच बीतल दूनहुं के
कुछ नइखे नीमन सुनहुं के
दूनहू मे बा लमहर झोल
झारत फिरत चार सौ बीसी॥
बुझs बबुआ.....
उलटा सीधा बात बखानत
झूठ साँच एकही मे सानत
गठजोरिया बा बनल भकोल
अबकी बेरी झरी बतीसी॥
बुझs बबुआ.....
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बोलत बिरही बोल
बेगइरत बा निपोरत खीसी
बुझs बबुआ गदह पचीसी॥
एक के बाबू,एक के माई
दूनों बेकल, धाई-धाई
दूनों के बा डिब्बा गोल
केने जइहें खबर नबीसी॥
बुझs बबुआ.....
दस-पाँच बीतल दूनहुं के
कुछ नइखे नीमन सुनहुं के
दूनहू मे बा लमहर झोल
झारत फिरत चार सौ बीसी॥
बुझs बबुआ.....
उलटा सीधा बात बखानत
झूठ साँच एकही मे सानत
गठजोरिया बा बनल भकोल
अबकी बेरी झरी बतीसी॥
बुझs बबुआ.....
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नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
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