कवन समरसता - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

सभे बोलत बिरही बचनियाँ हो रामा
कवन समरसता॥

देश समाज सभे फुटल अझुराइल
घरवों बहरवों से सनेहिया हेराइल
बचल नाही नेह के किरनियाँ हो रामा
कवन समरसता॥

आपुसी समझ के घइला फोराइल
आपन माई बाबू , भाई भुलाइल
कहाँ हेरीं अपनन के चरनियाँ हो रामा
कवन समरसता॥

जोड़ला से जुड़े नाही कवन उपाय करीं
संसकार भूलल कूल्हि केकर नांव धरीं
दरके लागल दरपन के निसनियाँ हो रामा
कवन समरसता॥
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लेखक परिचय:-
नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
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