नेपाल घूम के का अइलन
देखs कवि जी इतरा गइलन॥
अब रोज बकैती झारेलन
सगरों गियान बघारेलन॥
का एकबचन का बहुबचन
सब घोर घार के तारेलन॥
अपने लुगरी अपने लकड़ी
संग मे फोटू खिंचवा अइलन॥
मुँह बिजुकावें सुनि लोकराग
चमचन के संगवे भाग-भाग॥
आपन महिमा अपने गावें
पकड़ि पाँव भौकाल बनावें॥
जब पड़ल काम शमशेरन से
मुँह आपन नोचवा अइलन॥
मोबाइल के जब चलन बढ़ल
एडमिन बनला के भूत चढ़ल॥
अब ग्रुप बनवा के अकड़ेलन
सब हाथ जोरि के पकड़ेलन॥
मगरू झगरू के फेरा मे
चलती बेरा ढिमिला गइलन॥
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देखs कवि जी इतरा गइलन॥
अब रोज बकैती झारेलन
सगरों गियान बघारेलन॥
का एकबचन का बहुबचन
सब घोर घार के तारेलन॥
अपने लुगरी अपने लकड़ी
संग मे फोटू खिंचवा अइलन॥
मुँह बिजुकावें सुनि लोकराग
चमचन के संगवे भाग-भाग॥
आपन महिमा अपने गावें
पकड़ि पाँव भौकाल बनावें॥
जब पड़ल काम शमशेरन से
मुँह आपन नोचवा अइलन॥
मोबाइल के जब चलन बढ़ल
एडमिन बनला के भूत चढ़ल॥
अब ग्रुप बनवा के अकड़ेलन
सब हाथ जोरि के पकड़ेलन॥
मगरू झगरू के फेरा मे
चलती बेरा ढिमिला गइलन॥
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नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
संपादक: (भोजपुरी साहित्य सरिता)
इंजीनियरिंग स्नातक;
व्यवसाय: कम्पुटर सर्विस सेवा
सी -39 , सेक्टर – 3;
चिरंजीव विहार , गाजियाबाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
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