चान माँगै ललना - हरिराम द्विवेदी

चान माँगै ललना तरइया माँगै ललना
रोइ रोइ गोलकी जोन्‍हइया माँगै ललना।

केहू बतावै कहवाँ जाईं
सरग क तरई कइसे पाईं
कवन खेलौना दे बबुआ के
कउनी जोगिम से चुपवाईं
लोट पोट करै अँगनइया माँगै ललना
चान माँगे ललना।

ताल तलइया नरई जामे
बछरू गइया घामे-घामें
कहाँ भेटाई कइसे आई
तरई बाटै केतनी लामे
सूझै नाही कउनो उपइया माँगै ललना
चान माँगै ललना।

रोज सबेरे जब पह फाटै
चलै अजोर अन्‍हरिया छाँटै
बिहने बिहने जोति किरन कै
सच्‍चो केतनी बढ़िया बाटै
भोरे-भोरे सोनचिरइया माँगै ललना
चान माँगै ललना।
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चान माँगै ललना - हरेराम द्विवेदी लेखक परिचय:-
नाम: हरिराम द्विवेदी
जन्म: 12 मार्च 1936
जन्म स्थान: शेरवा, मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: अँगनइया, पातरि पीर, जीवनदायिनी गंगा,
साई भजनावली, पानी कहे कहानी, पहचान, नारी, रमता जोगी,
बैन फकीर, हाशिये का दर्द, नदियो गइल दुबराय
सम्मान: साहित्य अकादेमी भाषा सम्मान,
राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य भूषण (उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा),
साहित्य सारस्वत सम्मान (हिंदी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग) तथा अन्य

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