का का सियाईं - डॉ. हरेश्वर राय

आँखिन के अम्बर में, बाझ मेड़राता।
छातिन के धरती प, रेगनी फुलाता॥

गऊआं के पाकड़ प, बइठल बा गीध।
मुसकिल मनावल बा, होली आ ईद॥

खेतन में एह साल, फुटि गइल भुआ।
सहुआ दुअरिये प, बइठल बा मुआ॥

अदहन के पानी में, जहर घोराइल बा।
साँस लेल मुसकिल बा, हावा ओराइल बा॥

जीवन के डेंगी में, भइल बा भकन्दर।
लागता कि डूबी इ, बीचे समन्दर॥

चूर भइल सपना, भाग भइल घूर।
रोपतानी आम त, उगता बबूर॥

मू गइले बाबूजी, भइल ना दवाई।
माई के पिनसिन प, होता लड़ाई॥

बुचिया के आँखि में, माड़ा फुलाइल बा।
मेहरि के ठेहुन के, तेल ओरियाइल बा॥

बउआ हरेसवर जी, का का बताईं।
चारु ओरे फाटल बा का का सियाईं॥
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का का सियाईं - डॉ. हरेश्वर रायलेखक परिचय:-
नाम:- डॉ. हरेश्वर राय
प्रोफेसर (इंग्लिश) शासकीय पी.जी. महाविद्यालय सतना, मध्यप्रदेश
बी-37, सिटी होम्स कालोनी, जवाहरनगर सतना, म.प्र.,
मो नं: 9425887079
royhareshwarroy@gmail.com

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