विद्यालय के भवन सुहावन
बौद्ध तीर्थ के पुरवा पावन।
देवरिया से कवि सब आइल।
पूरा उन्चासे कम बावन।
एक आध के कमी परे त
हम के एगो गनि लीं अवरी।
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
अवर कविन के कविता होई
षट रस के ऊ रही रसोई।
तींत मीठ जब जइसन लागी
श्रोता लोग हँसी भा रोयी।
ऊपर से हमार कविताई
दालि भात पर रही अदवरी।
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु कवि अल्प दृष्टि अपनायी
दूर दृष्टि से ना लखि पायी।
केहु अतिसार ग्रहणिये होईं
केहु मिल जुल पित के दुख रोई।
केहु के अन्तरदाह सतायी
आधा सीसी काम न आयी।
लीटर पी टर हो के गायी
उहे अनिद्रा सब पर लायी।
केहु का जल से घंट सिंचाई
यदि सुन फिलिया तनिक बुझाई।
आ बोली मुँह से ना बहिराई
श्रोता तब न सकी सुन बहरी।
जर से पहिला जर मिट जाई
ज्वार कविन का मन में आई।
ट्रेन धरे खातिर सब धवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु कवि हथिया महा भयावन
केहु कवि मघा मेघ झरि लावन।
श्रोता रूप पपीहा खातिर
कुछ कवि स्वाती बूँद सुहावन।
यदि बढ़ियाँ संयोग तुलाई
मोती के दरसन हो जाई।
भोजपुरी खातिर मन तरसी
चन्द्रशेखर के द्रोपदी परसी।
केहु पुख सहित वाण कवि आई
ओकरा अस नी के भ्रम छाई।
कि अदरे में कमी बुझायी
खीसिन मिरगी सिरा कँपायी।
बरस परी आ गरज सुनायी
केहु भर नीके चख जल लायी।
पूर्वा पर जे ना चित राखी
ए कृति का ऊपर का भाखी।
केहु उतरा के अर्थ लगायी
सगरो छिन भिन करी कमायी ।
हम बसन्त के बनब बनवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु अनुराधा मँगलकारी
आ के पूरा मँच सँवारी।
सँचालक कवि शाखा आपन
करिहें यदि निशंक संस्थापन।
नीमन श्रोता लोग परायी
सभा न उहाँ पुनर्वस पायी।
केतनो केहु करी चिरौरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
श्रवण मूल आशय अपनायी
उहे राति में घर से आयी।
सम्मेलन यदि उतरी सही
रस से अभिजित ना केहु रही।
बुद्धि घनिष्ठा पाले परीं
त शतभीखा से पेट न भरी।
रहनि ज्येष्ठा ना यदि आयी
त डरे वतीरा ना रहि पायी।
अवरी सब का देखी देखा
हम ना लिखबि कविता अस लेखा।
बनबि मँच पर तीस फरवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
ऋतु वसन्त के हवे प्रथम दिन
सरस्वती देवी के पूजन।
छबिस तीस वाली गोष्ठिन के
एही में बाटे आयोजन।
आज मार के जन्म दिवस ह
राष्ट्रपिता स्वर्गमन दिवस ह।
आज निराला पुण्य जयन्ती
श्रद्धान्जलि उनहूँ का सन्ती।
कई पर्व के नाधल दँवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
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बौद्ध तीर्थ के पुरवा पावन।
देवरिया से कवि सब आइल।
पूरा उन्चासे कम बावन।
एक आध के कमी परे त
हम के एगो गनि लीं अवरी।
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
अवर कविन के कविता होई
षट रस के ऊ रही रसोई।
तींत मीठ जब जइसन लागी
श्रोता लोग हँसी भा रोयी।
ऊपर से हमार कविताई
दालि भात पर रही अदवरी।
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु कवि अल्प दृष्टि अपनायी
दूर दृष्टि से ना लखि पायी।
केहु अतिसार ग्रहणिये होईं
केहु मिल जुल पित के दुख रोई।
केहु के अन्तरदाह सतायी
आधा सीसी काम न आयी।
लीटर पी टर हो के गायी
उहे अनिद्रा सब पर लायी।
केहु का जल से घंट सिंचाई
यदि सुन फिलिया तनिक बुझाई।
आ बोली मुँह से ना बहिराई
श्रोता तब न सकी सुन बहरी।
जर से पहिला जर मिट जाई
ज्वार कविन का मन में आई।
ट्रेन धरे खातिर सब धवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु कवि हथिया महा भयावन
केहु कवि मघा मेघ झरि लावन।
श्रोता रूप पपीहा खातिर
कुछ कवि स्वाती बूँद सुहावन।
यदि बढ़ियाँ संयोग तुलाई
मोती के दरसन हो जाई।
भोजपुरी खातिर मन तरसी
चन्द्रशेखर के द्रोपदी परसी।
केहु पुख सहित वाण कवि आई
ओकरा अस नी के भ्रम छाई।
कि अदरे में कमी बुझायी
खीसिन मिरगी सिरा कँपायी।
बरस परी आ गरज सुनायी
केहु भर नीके चख जल लायी।
पूर्वा पर जे ना चित राखी
ए कृति का ऊपर का भाखी।
केहु उतरा के अर्थ लगायी
सगरो छिन भिन करी कमायी ।
हम बसन्त के बनब बनवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
केहु अनुराधा मँगलकारी
आ के पूरा मँच सँवारी।
सँचालक कवि शाखा आपन
करिहें यदि निशंक संस्थापन।
नीमन श्रोता लोग परायी
सभा न उहाँ पुनर्वस पायी।
केतनो केहु करी चिरौरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
श्रवण मूल आशय अपनायी
उहे राति में घर से आयी।
सम्मेलन यदि उतरी सही
रस से अभिजित ना केहु रही।
बुद्धि घनिष्ठा पाले परीं
त शतभीखा से पेट न भरी।
रहनि ज्येष्ठा ना यदि आयी
त डरे वतीरा ना रहि पायी।
अवरी सब का देखी देखा
हम ना लिखबि कविता अस लेखा।
बनबि मँच पर तीस फरवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
ऋतु वसन्त के हवे प्रथम दिन
सरस्वती देवी के पूजन।
छबिस तीस वाली गोष्ठिन के
एही में बाटे आयोजन।
आज मार के जन्म दिवस ह
राष्ट्रपिता स्वर्गमन दिवस ह।
आज निराला पुण्य जयन्ती
श्रद्धान्जलि उनहूँ का सन्ती।
कई पर्व के नाधल दँवरी
कुशीनगर में छबि सज नवरी॥
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