कथनी पर करनी फेरात नइखे,
दिमाग गरम रह ता कबो सेरात नइखे,
हर के दुगो बैल कइसे मान होइहें सन
जब एगो बुढ़ गाई घेरात नइखे
लोकतंत्र के मानी ई बा,
लोकि, लोकि के खाईं
जिन गिरला के आशा करिहें,
हाथमलत पछताई ए भाई,
अइसन राज ना आई।
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दिमाग गरम रह ता कबो सेरात नइखे,
हर के दुगो बैल कइसे मान होइहें सन
जब एगो बुढ़ गाई घेरात नइखे
लोकतंत्र के मानी ई बा,
लोकि, लोकि के खाईं
जिन गिरला के आशा करिहें,
हाथमलत पछताई ए भाई,
अइसन राज ना आई।
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धरीक्षण मिश्र
जन्म: 1901, बरियापुर, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
मरन: 24 अक्तूबर 1997, बरियारपुर, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
भाषा: हिंदी, भोजपुरी
विधा : कविता
रचना: धरीक्षण मिश्र रचनावली (चार खंड), शिव जी के खेती, कागज के मदारी, अलंकार दर्पण, काव्य दर्पण, काव्य मंजूषा, काव्य पीयूष
सम्मान: अंचल भारती सम्मान, भोजपुरी रत्न अलंकरण, श्री आनंद सम्मान, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ पदक, प्रथम ‘सेतु सम्मान’, भोजपुरी रत्न
जन्म: 1901, बरियापुर, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
मरन: 24 अक्तूबर 1997, बरियारपुर, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश)
भाषा: हिंदी, भोजपुरी
विधा : कविता
रचना: धरीक्षण मिश्र रचनावली (चार खंड), शिव जी के खेती, कागज के मदारी, अलंकार दर्पण, काव्य दर्पण, काव्य मंजूषा, काव्य पीयूष
सम्मान: अंचल भारती सम्मान, भोजपुरी रत्न अलंकरण, श्री आनंद सम्मान, गया प्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ पदक, प्रथम ‘सेतु सम्मान’, भोजपुरी रत्न
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