गीत जिनिगी के गावल ह आपन धरम - डॅा० जयकान्त सिंह 'जय'

गीत जिनिगी के गावल ह आपन धरम
चोट खा-खा हँसावल ह आपन धरम

साध जिनिगी के सध ना सकल साँच बा
आस अनकर पुरावल ह आपन धरम

हँ जी, भटकीले दुनिया ई भटकावेले
राह जग के देखावल ह आपन धरम

मीत जेही मिल मतलबे के मिल
पर मिताई निभावल ह आपन धरम

देखीं जेकरा के फँसल बा मद मोह में
ओह से खुद के बँचावल ह आपन धरम

आसरा आज फेर बात से फिर गइल
बात कह के पुरावल ह आपन धरम

आँख के पानी सब गिर गइल गाँव के
पानी गँवईं जोगावल ह आपन धरम

रात-दिन उठ-बइठ बीचे बेईमान के
सत्व से मान पावल ह आपन धरम
---------------------------------------------------------------
लेखक परिचय:-
नाम: डॅा० जयकान्त सिंह 'जय'
जनम: 1 नवम्बर 1969, मशरक बिहार
बेवसाय: भोजपुरी विभागाध्यक्ष
एल एस कॉलेज, मुजफ्फरपुर, बिहार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.