बरतुहारी - डा. गोरख प्रसाद मस्ताना

सबले सहज उपाय बा एगो दूर होई बेमारी
छोड़ छाड़ के चिंता सज्जी कर लीं बरतुहारी

शादी ठीक करावत फिरी घर में डाल के ताला
पाँच गाँव में नाम हो जाई लोग कही गुनवाला
एही बले बुते खाई ठगि ठगि रोज उधारी
अनकर मुड़ी बेल बराबर, खरच के छोड़ी चिन्ता
भाड़ा आवे जावे के लीं एह में कवन हीनता
ना आपन होखे कुरता तऽ माँग के अनकर झारीं

जगल भाग कहीं अपने के बननी कतहीं अगुआ
पाँचों अँगुरी घीव में बुझीं, होई रोजे फगुआ
दाल भात दही पापड़ चाभी, बैगन के तरकारी

अगुआ तिकड़म वाला होले, उनको बाटे भयलू
कहाँ बनेले अगुआ ऐरू गैरू नथ्थु खैरू
राम करे अगुआ हो जइते घोषित नौकर सरकारी

माथे मउर चढ़ेला, कँहवा बिन कहीं अगुआ के
दुल्हा बनि के सपना पूरा कब होई बबुआ के
अगुआ आगू हारेलें, गौ-बैलन के बयपारी
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लेखक़ परिचय:-
नाम: डा. गोरख प्रसाद मस्ताना
जनम स्थान: बेतिया, बिहार
जनम दिन: 1 फरवरी 1954
शिक्षा: एम ए (त्रय), पी एच डी
किताब: जिनगी पहाड़ हो गईल (काव्य संग्रह), एकलव्य (खण्ड काव्य),
लगाव (लघुकथा संग्रह) औरी अंजुरी में अंजोर (गीत संग्रह)
संपर्क: काव्यांगन, पुरानी गुदरी महावीर चौक, बेतिया, बिहार

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