जइसे दूध-दही ढोवे
सबके सेहत के चिंता करे वाला
गाँव के ग्वालिन हऽ
गौरैया
एक-एक फूल के चिन्हें वाला
मालिन हऽ।
अँचरा के खोंइछा ह
विदाई के बयना हऽ
अधर के मुस्कान ह
लोर भरल नैना हऽ।
चूडि़हारिन जस
सबके घर के खबर राखेले
डेहरी भरी कि ना
खेतवे देख के
अनाज के आवग भाखेले।
गौरैया,
सबके देयादिन ह
ननद हऽ
धूरा में लोटा के
बेलावे बरखा वाला जलद हऽ।
रूखल-सूखल थरिया में
चटकदार तिअना हऽ
आजान करत मुस्तफा
त भजन गावत जिअना हऽ।
ओरी के शोभा
बड़ेरी के आधार हऽ
चमेली के बगीचा में
गमकत सदाबहार हऽ।
दीदी खातिर ऊ
पिडि़या के पावन गोबर हऽ,
काच-कूच कउआ करत
माई के सोहर हऽ।
तृण-तृण ढो के
बाबूजी के बनावल खोंता हऽ,
रेडि़यों के तेल से महके जवन
माई के ऊ झोंटा हऽ।
झनके ना कबो ऊ
फगुआ के बाजत झाँझ-पखावज हऽ,
दूबरा के मउगी जस
गाँव भर के ना भावज हऽ।
गौरैया तऽ
रिश्ता हऽ, रीत हऽ,
चंचल मन के गीत हऽ।
फिर काहें बिलात बिआ
मिल के तनी सोंची ना
ओह पाँखी के पखिया के
बेदर्दी से नोंची ना।
हर भरल गाँव से
हर भरल घर से
हर हरिहर पेड़ से
ओह फुरगुद्दी के वास्ता बा,
एह बदलत जमाना में
भले बिलात बिआ बाकिर -
आजुओ ओकर सोंझका रास्ता बाऽ।।
आजुओ
भरमावे वाला
भरमावते बा गौरैया के
रोज दे के नया-नया लुभावना,
जमाना भले बदल ता
बाकिर आजुओ
चिरई के जान जाव
लइका के खेलवना।।
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सबके सेहत के चिंता करे वाला
गाँव के ग्वालिन हऽ
गौरैया
एक-एक फूल के चिन्हें वाला
मालिन हऽ।
अँचरा के खोंइछा ह
विदाई के बयना हऽ
अधर के मुस्कान ह
लोर भरल नैना हऽ।
चूडि़हारिन जस
सबके घर के खबर राखेले
डेहरी भरी कि ना
खेतवे देख के
अनाज के आवग भाखेले।
गौरैया,
सबके देयादिन ह
ननद हऽ
धूरा में लोटा के
बेलावे बरखा वाला जलद हऽ।
रूखल-सूखल थरिया में
चटकदार तिअना हऽ
आजान करत मुस्तफा
त भजन गावत जिअना हऽ।
ओरी के शोभा
बड़ेरी के आधार हऽ
चमेली के बगीचा में
गमकत सदाबहार हऽ।
दीदी खातिर ऊ
पिडि़या के पावन गोबर हऽ,
काच-कूच कउआ करत
माई के सोहर हऽ।
तृण-तृण ढो के
बाबूजी के बनावल खोंता हऽ,
रेडि़यों के तेल से महके जवन
माई के ऊ झोंटा हऽ।
झनके ना कबो ऊ
फगुआ के बाजत झाँझ-पखावज हऽ,
दूबरा के मउगी जस
गाँव भर के ना भावज हऽ।
गौरैया तऽ
रिश्ता हऽ, रीत हऽ,
चंचल मन के गीत हऽ।
फिर काहें बिलात बिआ
मिल के तनी सोंची ना
ओह पाँखी के पखिया के
बेदर्दी से नोंची ना।
हर भरल गाँव से
हर भरल घर से
हर हरिहर पेड़ से
ओह फुरगुद्दी के वास्ता बा,
एह बदलत जमाना में
भले बिलात बिआ बाकिर -
आजुओ ओकर सोंझका रास्ता बाऽ।।
आजुओ
भरमावे वाला
भरमावते बा गौरैया के
रोज दे के नया-नया लुभावना,
जमाना भले बदल ता
बाकिर आजुओ
चिरई के जान जाव
लइका के खेलवना।।
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नाम - केशव मोहन पाण्डेय
2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन।
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख, दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित।
नाटक लेखन आ प्रस्तुति।
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित।
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण, टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना.
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन.
संपर्क –
तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र.
kmpandey76@gmail.com
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