अजहूँ मिलो मेरे प्रान पियारे।
दीन दयाल कृपाल कृपानिधि करहु छिमा अपराध हमारे।
कल न परत अति बिकल सकल तन, नैन सकल जनु बहत पनारे।
मांस पचो अरू रक्त रहित भे, हाड बिनहुँ दिन होत उधारे।
नासा नैन स्रवन रसाना रस, इंद्री स्वाद जुआ जनु हारे।
दिवस दसों दिसि पंथ निहारति, राति बिहात गनत जस तारे।
जो दुख सहत कहत न बनत मुख अंतरगंत के हौं जाननहारी।
धरनी जिन झलमलितदीप ज्यों, होत अंधार करो उजियारे।
-------------------------------------------------------------------------------------------
दीन दयाल कृपाल कृपानिधि करहु छिमा अपराध हमारे।
कल न परत अति बिकल सकल तन, नैन सकल जनु बहत पनारे।
मांस पचो अरू रक्त रहित भे, हाड बिनहुँ दिन होत उधारे।
नासा नैन स्रवन रसाना रस, इंद्री स्वाद जुआ जनु हारे।
दिवस दसों दिसि पंथ निहारति, राति बिहात गनत जस तारे।
जो दुख सहत कहत न बनत मुख अंतरगंत के हौं जाननहारी।
धरनी जिन झलमलितदीप ज्यों, होत अंधार करो उजियारे।
-------------------------------------------------------------------------------------------

नाम: धरनीदास
जनम: 1616 ई (विक्रमी संवत 1673)
निधन: 1674 ई (विक्रमी संवत 1731)
जनम अस्थान: माँझी गाँव, सारन (छपरा), बिहार
संत परमपरा क भोजपुरी क निरगुन कबी
परमुख रचना: प्रेम प्रकाश, शब्द प्रकाश, रत्नावली
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें