कंकाल के रहस्य - 8 - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

एगो छोट सा मड़ई जइसन चाय के दुकान में लखन अपना एक साथी क साथे चाय पियत रहे जब पाड़ेजी एक हवलदार के साथे उहाँ पहुँचले. जब तक पाड़ेजी मोटरसायकिल खड़ा करके खाली भइले हवलदार दुकान से लखन के बोला के उनका पँजरा खाड़ कर दिहलस.
'गमछा सर, इहे हव लखन. अगर इजाजत हो त जबले आप एसे पूछताछ करिहन तबले हम अपने घरे से होले आई. 
'हवलदार के भी एतना देर में समझ में आ गइल रहे कि पाड़ेजी के का पसन्द बा अउरी का नाही. 
'जरुर भाई पर ध्यान रखी हऽ १० मिनट ले बेसी मत लगइहऽ.' 
'बस हम अबही गइली अबही अइली. वइसे आपके देरी होवे लगे त आप चल जायेम. हम केहु क सायकिल लेके थाने चल जाइब.' कहत हवलदार उहाँ से अइसे भागल मानो पाड़ेजी ओकरा के फिर से रोक लिहन. ओकरा गइला क बाद पाड़ेजी लखन से मुखातिब भइले. 
'नाम गमछा पाड़े, काम पुलिस के काम में मदद कइल. बाकि पुलिस वाला नईखीं.' पाड़ेजी लखन के आपन परिचय देले. 
'हमसे का चाहत बाया?' लखन के चेहरा से लागत रहे कि ओकरा पाड़ेजी से मिले में कवनो दिलचस्पी ना रहे आ ओकरा एह समय पाड़ेजी क आना भी पसन्द ना आइल. 
'लागत बा हमरा वजह से तोहरा मस्ती के रंग में भंग भइल बा. खैर हम ज्यादा समय ना लेब. हमार कुछ सवाल बा जेकर जवाब तू इहाँ भी दे सकेलऽ आ इहाँ दिल ना करे त थाना पर चल के भी दे सकेलऽ. सब तोहरा ऊपर बा.' 
ओकरा जवाब देबे क ढ़ंग से पाड़ेजी के यकीन हो गइल रहे कि आदमी टेढ़ बा आ सीधा तरह से जवाब ना दी एही से ओकरा के थाना के रौब देके बात कइले. थाना के नाम सुनते लखन के तेवर में कुछ नरमी देखाई दिहल अउर जवाब देबे खातिर तैयार हो गइल. 
ओकरा बाद पाड़ेजी लखन से का बात कइले केहु नाजान पाईल. १० ना बलुक पूरा २० मिनट बाद जब हवलदार घर ले वापस आइल तबहियों पाड़ेजी लखन से बाते करत रहन.
'ई बात के ध्यान रखिहऽ. जब भी हम सूचना भेजवायेब तब तोहरा बनारस हमरा पास आवे के होखी ना त बूझ लीहऽ.' हवलदार के पाड़ेजी क एतना बात सुनाई पड़ल मानो पाड़ेजी ओकरे के देख के आपन बात खतम करे लगले. 
'लेकिन?' लखन दुविधा में पाड़ेजी के देखे लागल जेकर मतलब शायद पाड़ेजी समझ गइले. 
'खर्चा के चिन्ता मत करीहऽ. तोहरा के बस में बिठा दिहल जाई अउरी जहाँ बस से उतरबऽ उहँवा से हमरा पास पहुँचा दिहल जाई.' पाड़ेजी लखन के दुविधा के खतम कइले त ऊ निश्चिन्त भाव से पाड़ेजी से सहमति के हाँ कइलस. एकरा बाद पाड़ेजी हवलदार के साथे मोटरसायकिल से वापस हो गइले. लखन उनका के जात तबले देखत रहे जबले पाड़ेजी क मोटरसायकिल ओकरा आँखी ले ओझल ना हो गइल. 
आप लोग सोचत होखब कि हम धारावाहिक शुरु कइला पर ठलुआ के भी बड़ा गुनगान कइले रहीं बाकि ओकरा कारनामा क बहुत ज्यादा जिकर ना कइलीं. पर हकीकत ई बा कि हर आदमी क आपन समय बा अउर समय पर ओकर जिकर जरुर होखी. रउआ लोगिन के सोहन के याद होखबे करी? अरे वही सोहन जेकरा के देख के ठलुआ पाड़ेजी के मिस काल कइले रहे आ जब पाड़ेजी एक आदमी के पीछा करत जिलाधिकारी के बँगला पर पहुँचल रहन. वही सोहन ठलुआ के पास मड़ई चाहे कुटिया के पास से गुजरत रहे जब अचानक ठलुआ ओकरा सामने आ गइल. 
'हट हट.' अचानक ठलुआ के सामने पा के सोहन हड़बड़ा गइल. 
'हम सब जानत हई गुरु. हमसे बच के केहर भगबऽ.' अपना से किनारा करके दुसरा तरफ जात सोहन के सामने खाड़ होके ठलुआ उनका आँखि में आँख डाल के कहलस त एक बार सोहन घबड़ा गइल.' का जानत हय बे. सरऊ, इहाँ मड़ई लगा लेलऽ त खुद के साहबे समझे लगलऽ. हम आजे तोहार इंतजाम करवा देत हई.' सोहन खुद के सम्हालत ठलुआ पर रोब जमावे क कोशिश करे लगल पर ओकरा का मालूम कि ठलुआ का चीज बा.
'जरुर करवा दऽ. गुरु दुनिया में जिये बदे बहुत कुछ करे के पड़ेला नाहि त ई कबो हमरो शौक तोहरे जइसने रहल.' अपना से कट के जात सोहन के सामने ठलुआ एक बार फिर खाड़ हो जाला. 
'शौक? कइसन शौक? ' सोहन ठलुआ के शक के नजर से देखे लागल जेकरा के देख के ठलुआ हँसे लागल. फिर अचानक गंभीर हो के कहलस... 
'औरतन क शौक. हमरे पास भी कुछ मस्त औरतन क लिस्ट हव. लेकिन हमरे पास अब पईसा नाही बचल हव. सब लूट लिहलिन कुल.' कहत ठलुआ रोवे लागल, सोहन के चेहरा क भाव हर पल बदले लागल मानो ओकरा के ठलुआ के बात क यकीन ना भइल. अचानक ठलुआ सोहन के पकड़ के चिल्लाये लागल.' तोहे यकीन नाही हव? हमरे साथ आवऽ. हम तोके देखावत हई.' कहत ठलुआ उनका के पकड़ले पकड़ले अपना कुटिया तक ले गइल अउरी कुछ फोटो देखावे लागल जेकरा के देख के सोहन के चेहरा पर चमक आ गइल. 
'तू सच कहत हउए. तोहरे पास ई सब लड़किन क पता हव?' सोहन के चेहरा ई सवाल करत खानी खुशी से चमकत रहे. 
'एक एक चीज क पता हव गुरु लेकिन बड़ी जालिम हईन कुल. हमरे हालत के देख के खुद अंदाजा लगा लऽ.' 
'तू चिन्ता मत कर. तू इनकर राज हमके बता दे फिर देख.' सोहन के चेहरा से ही लागत रहे कि दिमाग में कवनो शातिर चाल चल रहल बा. 
कवनो फायदा नाही गुरु. सब बड़ी जालिम खिलाड़ी हईन.' ठलुआ सोहन के चेहरा पढ़े क कोशिश करत के कहलस.'तू ओकर चिन्ता मत कर. बस हमके पता बता दे फिर देख सब के सब कईसे तोहार गुलामी करे लगीहन.'
'ठीक हव गुरु बता देब. लेकिन पहिले हमके अपने गोल में शामिल करे के होई. हमार मतलब अपने साथे हमके भी ओहर ले के जाये के होई.' कहत के ठलुआ उनका के ओह तरफ ईशारा कइलस जेहर से पिछला दिना ऊ ओकरा के औरत के साथे आवत के देखले रहे. अब सोहन के समझ में आइल कि कईसे ई पागल आदमी सिर्फ ओकरा के पकड़ के एतना बात कइलस. सोहन कबो ठलुआ के देखे कबो ठलुआ के हुलिया के देखे. 
'हुलिया पर मत जा गुरु. हुलिया त तोहरे दया से बदल जाई.' ठलुआ सोहन के मंशा जान के कहलस फिर लड़कियन के फोटो देखावत के आगे कहे शुरु कइलस. 'अइसन लड़कियन के साथे समय बितावे खातिर तोहे कुछ न कुछ त करे के ही पड़ी गुरु.' कह के ठलुआ उनका ओरी बड़ा आस लेके देखे लागल. 
'ठीक हव लेकिन हमरे साथे चले में ४‍५ दिन क समय लग सकत हव. तब तक हम तोहरे हुलिया क इलाज कर देब. बाकि सोच लिहे. अगर हमरे साथे कवनो चालाकी कइले त ई मोहल्ले में त का पूरे बनारस मे रहल मुश्किल हो जाई.' 
'भरोसा करा गुरु. चह बा त ओहर चके के पहिले कवनो एक से फोन पर बात भी करा देब. हमरे पास सबहिन क नम्बर हव. लेकिन तनि जल्दी करे. कई दिन हो गयल हव ठीक से खाना खईले. हमरे खाना क मतलब त समझ में आ गयल न?' कहत के ठलुआ उनका आँखी में आँख लगा के बात कइलस आ जब ओकरा के लागल कि सामने वाला शायद ओकर मतलब ना समझले हो तब ऊ फोटो के तरफ इशारा कइलस. सोहन कुछ पल तक ठलुआ के आँखी में देखलस फिर ओकर पीठ थपथपा के चल गईल. ठलुआ ओकरा के तब तक जात के देखत रहे जब ले कि ऊ ओझल ना हो गइल. ठलुआ के चेहरा पर आपन चाल कामयाब हो जाये क खुशी साफ झलकत रहे. 
ठलुआ के चाल का रंग लाई? लखन अउरी पाड़ेजी के बीच का बातचीत भइल? का कातिल सचमुच सोहन ही बा. का होई जब ठलुआ के सचमुच सोहन के साथे पिछवाड़े जाये के पड़ी? ई सब जाने खातिर इंतजार करीं अगिला अंक के.
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अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"











अंक - 93 (16 अगस्त 2016)

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