अगिये बा गोड़थानी हमरा, अगिये बा सिरहानी
आग के बिस्तर पर हम जाने कब से लेटल बानी
लोग समुंदर में हमके फेंकलस कि मछरी खाई
आ हम मुँह में मछरी लेके बाहर निकलल बानी
पहिले अपना चंचल मन के शांत करीं, फेर सोचीं
साफ तबे लउकेला जब अहथिर हो जाला पानी
चिउँटी से नीमन नैतिक शिक्षा ना देला केहू
बाकिर उ नैतिक शिक्षा के कबहूँ बात बखानी ?
जहवें छेद मिलेला, उहवें से ताके-झाँकेले
आवारा सूरज बाबा के हई देखीं मनमानी
जे आके जाये ना कबहूँ, ओकर नाम बुढापा
जे जाके आवे ना कबहूँ ओकर नाम जवानी
दिल लेके दिल देले बाड़ू, मँगनी नइखू देले
तूहूँ पापड़ बेलले बाड़ू, हमहूँ बेलले बानी
शायर के बीबी बोले कि हम पागल के बीबी
अब जे-जे शायर होखे, ऊ बूझे एकर मानी
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अंक - 83 (7 जून 2016)
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