अब गैरियत के बात का मन हो गइल तमाम
तोहरे में हम समाइल, हमिता के अब न नाम।
दउराइ रहल मनवाँ हमके कहाँ-कहाँ
जब गिर गइल बा हमरा हाथन से खुद लगाम।
झगड़ा ई तबे ले रहल जब ले कि जिन्दगी
अब त चले के बेर भइल सबके राम-राम।
पानी का बुलबुला के कतना बसात बा
पनिये के नकारेला पल भर के छूम-छूाम।
गाड़ी रुकी कहाँ कही के एह हाल में
ठहरे-ठहर जे राह में लागल बा खूब जाम।
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लेखक परिचय:-
नाम: कुलदीप नारायण 'झड़प'
जनम: 5 अगस्त 1911
जनम थान: लिलकर, बलिया, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: दीपदान, अरघ, वात क बात आदि
अंक - 83 (7 जून 2016)
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