चाल सुधारा चाल सुधारा
बरखा रानी चाल सुधारा
कब्बौ झूरा कब्बौ बाढ़
केसे केसे लेईं राढ़
खेतवन से बस दुआ बंदगी
खरिहनवन से भाई चारा॥
सोच समझ के पाठ पढ़ावा
पानी में जिन आग लगावा
कब तक रहबू आसमान पर
तू निचवों तनी निहारा॥
अब जिन बरा धूर में जेंवर
सब बूझत हौ ई खर-सेवर
कवने करनी गया बइठबू
पहिले कुल क पुरखा तारा॥
कब तक अपने मन क करबू
हमरे छाती कोदो दरबू
ताले ताले धूर उड़त हौ
कागज पर तू खना इनारा॥
दिनवा रतिया रटै पपीहा
उल्लू भइलै आज मसीहा
कौवा भंजा रहल है मोती
मुँह जोहत है हंस बेचारा॥
फगुन चइत में पानी पानी
सावन-भादों में बेइमानी
जेही क कुल छाजन-बाजन
वहिके पतरी खंडा बारा।
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लेखक परिचय:-
नाम: कैशाल गौतम
जनम: 8 जनवरी 1944
देहावसान: 9 दिसंबर 2006
जनम थान: वाराणसी (चंदौली)
शिक्षा: एम.ए., बी. एड.
रचना: सीली माचिस की तीलियाँ, जोड़ा ताल, तीन चौथाई आन्हर, सिर पर आग
सम्मान: शारदा सम्मान, महादेवी वर्मा सम्मान, राहुल सांकृत्यायन सम्मान, लोक भूषण सम्मान, सुमित्रानन्दन पंत सम्मान, ऋतुराज सम्मान
अंक - 83 (7 जून 2016)
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