डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
रात-चाँद के समेट
छुप गइल, हाँ छुप गइल
दिन के आगे, होके ढेर
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
बहुत कम, हाँ बहुत कम
तनी-मनी या ढेर कम
पिस रहल बा, बारीक़ तक
समय के, चाक पर
मन के, दाब कर
चुप रह s, तू सब, जान कर
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
रस भरल, रंगीन सब
चारो ओर, हसीन सब
जुआ आ ताश अब
जिनगी में आस कब
अब, कब या तब
पिस रहल बा, बारीक़ तक
समय के चाक पर
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
रात के आँचर में
दिन के लुका जाना
भोर में, रात के
फिर से, समां जाना
जी रहल बा, डोर पे
आदमी बे, जोड़ पे
सोच के, हाँ रोक के
खुद में, लुका जाना
आपने गम में
जिनगी, भुला जाना
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
रुक सबे जन, थाम ले अब
जोड़ से. हुँकार ले अब
जिनगी के सांस दे
कुछ त, अब विश्वास दे
बदल दे तू आज के
हर बेतुकी बात के
जात के, पात के
हर अंधविस्वास के
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
जल रहल बा, जड़ से अब
सुलगी त, राख तक
आग के हर, धाह तक
भस्म हो जा, इंसान अब
अब, कब या तब
घर से अब समाज तक
कुछ नया, कुछ सही
जोड़ दे हर, आस पर
सांस के एहसान पर
इंसान से इंसान पर
डेग-डेग मन के वेग
तेज़-तेज़ अउर तेज़
------------------
श्वेताभ रंजन
अंक - 81 (24 मई 2016)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें