जब ले मितवा मोर भइल बा
दुनिया-राजे सोर भइल बा.
हँसले बा अपना पर अतना
भर-भर आँखिन लोर भइल बा.
हमरे अँगना रैन-बसेरा
उनका सब दिन भोर भइल बा.
ऐनक में खुद के चुचुकारे
घाहिल चिरई-ठोर भइल बा.
जनहित, बस, अस्टंट सियासी
‘सत्ता’ ला गठजोर भइल बा.
‘आसिफ’ के फिकिरे दुबराइल
जब ले आदमखोर भइल बा.
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अंक - 43 (1 सितम्बर 2015)
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