देखाता कूल्ही
बुझाता कूल्ही
हम दू आउर दू
पाँच कहिलें
मन के मरजी बा।
शस्त्र जीभिए हव
संविधान ब्रह्मास्त्र
हर जगों चली
बुरी भली
खुद गरजी बा।
अंगना सून रहल
जयचंद के अगवानी से
कुल्हि अछूत भयल
पृथ्वीराज के पाती से
कहेन सब फरजी बा।
अर्थ विस्तार
कबों ना होई
शब्द संकोच
चली हर जगहा
दुनिया बेदरदी बा।
कइसन पंथ
भा कइसन शिक्षा
एसे त भल अशिक्षा
देश से ईष्या?
उलट हमार अरजी बा।
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अंक - 70 (8 मार्च 2016)
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