कइसन बहल बेयार - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

कइसन बहल बेयार 
सउसे ओठ झुराइल बा। 
ढहल जाता डडवारी 
मनई ओमे पिसाइल बा॥ 

छूछ भइल अपनन के थाती 
दुबक रहल बा अब उतपाती 
धनियाँ के हेरीं अब कहवाँ 
जोन्ही बदरे सऊनाइल बा॥ 

मान मिलल माटी में 
साँच घेराइल टाटी में 
पिछवारे क सांकल टूटल
तोहमत सीरे घहराइल बा॥ 

परछाहीं के साथ छुटल 
भक्ति भाव के भान घुटल 
टभके लागल देह पीर में 
कइसन बीया अंखुआइल बा॥ 

जमल लमेरा खेते खेत 
करब निराई फेंकब रेत 
पसरे नाही देबे एकरा 
कूल्हे रँग चिनहाइल बा॥ 

हमरे थरिया मे खात रहल 
भर जिनगी के साथ रहल 
न जानी कवना कोल्हू में 
बझल आउर अंइठाइल बा॥ 
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अंक - 73 (29 मार्च 2016)

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