जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी कऽ पाँच गो कबिता

जब केवनो कबी के क्षमता के बात चलेला तऽ इहे देखल जाला कि ऊ कबी के विस्तार केतना बा अउरी ओह बिस्तार में गहराई अउरी बिसय रखे के ढंग का बा। जय प्रकाश जी ई पांच गो कबिता एह बिस्तार के देखावत बाड़ी सऽ।

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अब्बो ले सुपवा बोलेला


ताल तलहटी, गाँव के रहटी 
कब फूटल किस्मत खोलेला।
अब्बो ले सुपवा बोलेला।

दिन में खैनी साँझ के हुक्का 
भोरहीं आइल साह के रुक्का 
खेती में ना भयल कुछहु 
अन्दाता फुक्के का फुक्का 
बिगरल माथा डोलेला।
अब्बो ले सुपवा बोलेला

बाढ़ बहवलस गाँवे गाँव 
पहरी पर अब बनल ठांव 
मदत लीहने शहरी बाबू 
अब कइसे मोर पड़ी पाँव 
फंसरी में , मुड़ी तोलेला

अब्बो ले सुपवा बोलेला


नन्हकी आपन भइल सयान 
कब ले राखब ओकर ध्यान 
धावत धुपत घिसल पनही 
बेटहा के बा ढेर पयान 
हिम्मत के थुन्ही डोलेला
अब्बो ले सुपवा बोलेला


बंसखट भइल दुअरे सपना 
बइठे वाला ना केहू अपना 
नेह छोह के किस्मत फूटल 
उधार पइंच भइल कलपना 
मन, भर गगरी विष घोलेला
अब्बो ले सुपवा बोलेला


हम बानी लइकी के बाप 
सोचत छाती लोटत सांप 
कइसे लागी हाँथे हरदी 
सोचत बेरी गइली काँप 
बिन बेटी घर ना सोहेला
अब्बो ले सुपवा बोलेला
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चलती के बेरिया


निहुरी ओढ़ावे ले चदरिया। चलती के बेरिया

जवने दिन पडल हमरे ओहरवा 

आई, ठाढ नियरे चारो कंहरवा 
घरवां में रोअत गुजरिया। चलती के बेरिया


लोर भरी अंखिया, अइनी सहेलिया 
आपन पराया जे निकसल महलिया 
लोर बरसे अस बदरिया। चलती के बेरिया


सून महल, सून गउवां के गलिया 
मुरझाइल अब बगियन में कलिया 
कहवां हेराइल अंजोरिया चलती के बेरिया


साथ संग कुल सभसे छुट गइलें 
हित मीत हमरे नीयरो न अइलें 
असवों गवाइ न कजरिया चलती के बेरिया
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छुंछा के बा, के पुछवइया 



तातल गरमी ओहमे उबलत 
ध के मुठिया खेत में डोलत 
ओठ झुराइल भइल दिनौनी 
चमड़ी जोहत बा पुरवइया 
छुंछा के बा, के पुछवइया


आइल बचपन, गइल जवानी 
बीतल जिनगी चढ़ल न पानी 
छोटकन के तन कसहूँ ढकली 
बोलत बोलत बप्पा मइया
छुंछा के बा, के पुछवइया 


कब्बों जे कुछ भयल खेत में 
नाही मयस्सर उहो पेट में 
सहुआ लेगल कुल उठवा के 
बाचल घर में धान के पइया 
छुंछा के बा, के पुछवइया


कइसे मनवा होई शीतल 
बून बून के तरसत बीतल 
घर क थाती कुल्ही ओराइल 
अंगना से भागल गौरैया
छुंछा के बा, के पुछवइया


भलहीं करबा केतनो बनिकी 
अब त हमरो माथा ठनकी 
एही बतकही भूख न मेटल 
कहिया ले का करबा भइया
छुंछा के बा, के पुछवइया
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नेह क थाती


उसर भइल नेह क थाती 
कहवाँ हेरी आपन माटी
धावल धुपल गाँव पहुचलीं 
मुँह बनवले मिलल संघाती

बिला गइल हवा क खुसबू 
पीपरो के छांह नदारत बा
सउसें कचरा भरल मन 
दिल में दरार पारत बा 


दुअरा न बाबा मिललें 
घरे न दिखलिन दादी
चहक दिखल न कतहूँ 

दिखल सउनाइल खादी
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लूर के पता


मत पूछ गुरु 
भकचोन्हर मातिन 
अइसन मालिक कहाँ ले खोजला 
कूल्हे संहतिया लसराइल बाड़े 
ओहनी के गतरे गतर 
पिटारा खुल रहल बा। 

रोवनी कलपनी 
भोर दुपहरी साँझ 
लूआर खलल डाली 
तराश बुझते नइखे 
मालिक के तिलक के बेरा 
जेकरा जवन हुलास रहल 
बिला गइल। 

मालिक त नीमने रहुवें 
उनका चारी ओरी वाला सब 
केतना नीमन बा?
कुल उतिराए लागल 
अतराइल बाड़े सन
कुछ अन्हराइलों बाड़े 
ओहनी के अपने 
लूर के पता नखे। 

कबों होखबों करी 
शक सुबहा बरोबर बुझाता 
अरे नाही 
उ निश्चित बा
कबों पता ना चली।
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लेखक परिचय:-


मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 79 (10 मई 2016)

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! द्विवेदी जी के ई कविता अनुभव के तराजू पर चढ़ल ऊ बटखरा लागत बा, जवना के सामने बाकी सगरो ज्ञान-ध्यान, राग-रंग, मिलन-बिछोह के तड़प आ उद्यम हलुका बा।
    अइसन सम्पदा बटोरे आ परोसे खातिर मैना टीम के हृदय से बधाई।

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