जब आदिमी होला अकेल - राजीव उपाध्याय

जब आदिमी होला अकेल
दुनिया लागे माटी के लोना
लोग बुझाला बंजर सरेह।

दुख के भाखा होला अजबे
कहबो करे चुप रहबो करे
अउरी देंहि सूखि के होला परेह।

नेह, सनेह अउरी प्रीति सभ
उखरि-उखरि देंहि देखावे
जइसे खोले भेद विदेह।

तर उपर छितराइल बा सभ
संगे रहऽ भा रहऽ अकेल
जब आदिमी होला अकेल।
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लेखक परिचय:-

पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 79 (10 मई 2016)

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