गमछा पाड़े - 2 - अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"

महादेव बाबू के बँगला (कोठी) पर रिश्तेदारन आ महादेव बाबू के इकलौती वारिस ममता के बीच में पारिवारिक मीटिंग चलत रहुवे. सब केहु ममता पर महादेवजी द्वारा तय कर दिहल बियाह करे खातिर जोर देत रहुवे. ममता के बियाह से एतराज ना रहे काहे से कि महादेव जी ममता के बियाह ओही से तय कईऽले रहुवन जेकरा से ममता चाहत रहली. बाकिर उनकर दिली इच्छा कहत रहे कि जबले ओकरा बाबा के कातिल के पता ना चल जाईऽ, उऽ बियाह ना करी. ममता के सामने अजीब दुविधा रहे आ ईऽ दूर ना भइल रहीत जदि ओकरा होखे वाला दुलहा आ प्रेमी राजन ऊहाँ ना आइल होईत.

"ममता ठीक कहत हौ. अब हम लोग बियाह तब्बे करब जब बाबा के कातिल पकड़ा जाईऽ." कहत के राजन जब बइठका में घुसल तऽ ममता के जान में जान आ गईल. सब केहु आश्चर्य से राजन के देखे लागल.
"जवाँइ बाबू ईऽ का कहत हउऽआ..., तोहें तऽ मालूम हव कि बाबूजी ममता के बियाह हाली से हाली कर देबे चाहत रहन." ममता के बुआ राजन के समझावे खातिर कुछ कहे लगली तऽ राजन उनकरा के बीचे में टोक देत बा.
"हम जानत हईऽ बुआजी लेकिन अब बाबा नाहीं हउऽअन. फेर एक साल तक तऽ वईसहीं रुके के पड़ी. हमके पूरा यकीन हौ कि कातिल के पकड़ में आये खातिर एतना समय बहुत हौ."
राजन के बात सुन के बुआजी अउरो कुछ कहती ओकरा पहिले ही पाड़ेजी ठलुआ के साथे नाटकीय अंदाज में प्रकट होके सबके चौंका दिहले.
"सही कहत बानी पाहुन. बियाह खातिर तऽ साल भर रुके के ही पड़ी बाकि जदि रुके के कारन महादेव बाबू के हत्यारा के पकड़ल बा तऽ हम आप सभके भरोसा दिआवत बानी कि महादेव बाबू के हत्यारा सात दिन का भीतरे हमरा मुठ्ठी में आ जाईऽ."
सब केहू पाड़ेजी के आश्चर्य से देखे लागल. अइसन ना रहे कि केहू उनका के पहिचानत ना रहे बाकिर उनका दावा पर केहू के यकीन ना होत रहे.
"ई का कहत हउऽव पाड़े ? जवन काम पुलिस महीना भर में ना कर पईलसि ऊ काम तू सात दिन में कर देबऽ?" , बुआजी सबकर शंका पाड़े जी पर जाहिरो कर दिहली.
"बहिना, पहिलका बात त ई कि हमरा के गमछा पाड़े सुने में ज्यादा संतोष मिलेला अउरी दुसरका बात ई कि हमरा ज्ञान के कबो चैलेन्ज मत करीहे. हमरा खातिर सातो दिन बहुत ज्यादा बा काहे से कि कातिल त हमरा सामने बा."
"काऽऽ?" सब केहू पाड़ेजी के फेरु आश्चर्य से देखे लागल आ पांड़हूजी सबका चेहरा पर आइल भाव के पढ़े के कोशिश करे लगले. कुछ अइसे कि कातिल के अजुवे पकड़ लिहन. घुमफिर के उनकर टेढ़ निगाह बुआजी पर आ के टिक गइल आ तनी असहज हो गइल बुआजी खुद के संभाले के कोशिश करत पाड़ेजी से पुछ दिहली - "हमके अईसे का देखत हउवऽ? कहीं पुलिस के तरे तोहरो हमरे पर त शक नाही होत हौऽ?"
बुआजी के बात सुन के पाड़ेजी कुछ कहतन ओकरा पहिले ममतो कुछ कहल चाहत रहे बाकि पाड़ेजी ओकरा के चुप रहे के इशारा करत कहले ‍- "कुछ कहे के जरुरत नाही बा ममता बिटिया. जबले हम कातिल के सामने नइखीं कर देत तबले हमरा सबका पर शक बा. एही से हम एगो बात अउरी कहे चाहत बानी. सात दिन तक ईंहा मौजूद हर केहू के एहीजगे रहे के पड़ी. पूरा सात दिन तक." पाड़ेजी आपन बात दोहरावत ममता के दुलहा के चेहरा पर नजर गड़ावत फेर कहले - "हमार बात समझ में आइल नू पाहुन?"
"बाकिर हम ईंहा कइसे रह सकत हईं? हमके आफिसो जाये के होला." ममता के दुलहा आपन परेशानी बतवलसि त ममता ओकरा समर्थन मे कुछ कहल चहली. बाकिर पाड़ेजी ओकरा पहिलहीं बोल पड़ले - "आफिस त रउआ ईहँवो से जा सकत बानी. हँ जदि एह घर में रहे में कवनो समस्या बा त हम अपना कुटिया पर राउर व्यवस्था करा देब."
"बाकिर चच्चा...." पाड़ेजी के बात सुनके ममता कुछ कहे चाहत रहल कि पाड़ेजी ओकरा ओरि घूर के देखले. ममता शायद घूरे क मतलब समझ गइल अउरी आपन सम्बोधन के सुधार के कहे शुरु कईलस - "गमछा चच्चा!" गमछा सुन के पाड़ेजी के गंभीर चेहरा सामान्य हो गइल. "बाबूजी के कातिल से राजन के का सम्बन्ध?"
"सम्बन्ध त उपर वाला जाने बिटिया. हम त खाली सात दिन खातिर कहत बानी. आगे भोले बाबा देखीहन." कह के पाड़ेजी जाये लगले बाकिर दरवाजा के बाहर जाये का पहिलहीं केहू के बड़बड़ाहट सुन के रुक गइले.
"लगत हौ पाँच लाख के बात सुन के पंडितजी के दिमाग घुम गइल हौ..." कहे वाला बुआजी के लईका रहे जे ई समझत रहे कि पाड़ेजी चल गइल बाड़े. "सही कहत बाड़ऽ बबुआ!" - पाड़ेजी पलट के ओकरे पास आके रुक गइले. ओकर त बूझि लऽ कि सिट्टी पिट्टी गुम हो गइल. ओकरा त बुझईबे ना कइल कि का कइल जाव.
"वइसे त हम बनारसी कम्मे बोलीला. बाकिर एक ठे बनारसी कहावत याद जरुर दियाइब. पहिले तउलऽ फिर बोलऽ... सात दिन का अन्दर कातिल नाही मिलल तऽ ५ लाख रुपिया हमरे घरे से आके ले लीहे." कहि के पाड़ेजी जाए लगले बाकि फेरु रुक के सबका से मुखातिब हो के कहले "यदि आप सब सचमुच महादेव बाबू के कातिल के सामने लियाबे चाहत हउआ त सात दिन तक ईहँवा से केहू ना जाव. जवाई बाबू आपो."
एतना कहि के पाड़ेजी उहाँ एक पल ना रुकले. सब केहु का करे का ना करे क मुद्रा में एक दोसरा के देखे लागल.
-------------------------------------------
अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"











अंक - 78 (03 मई 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.